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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचसु जिणकल्लाणेसु चेव महरिसि तवाणुभावाओ। जम्मतरनेहेण य, आगच्छंति सुरा इहयं ॥ १९२ ॥ संकेत दिव्वपेमा, विसय पसत्तासमत्तकत्तव्वा । अणहीणमणुयकज्जा, नरभव-मसुहं न इंति सुरा ॥१९३ ॥ चत्तारि पंचजोयण, सयाई गंधोय मणुयलोगस्स। उर्ल्ड वच्चइ जेणं, न हु देवा तेण आवंति ॥ १९४॥ दो कप्प पढम पुढवी, दो दो दो बीय तइयगं चउत्थिं । चउ उवरिम ओहीए, पासंति पंचमं पुढविं ॥ १९५॥ छट्ठी छ गेविज्जा, सत्तमियरे अणुत्तर सुरा उ। किंचूण लोगनालिं, असंखदीवुदहि तिरियं तु ॥१९६ ॥ बहुअयरं उवरिमगा, उर्द्ध सविमाण चूलिय धयाइ । ऊणद्ध सागरे संख जोयणा तप्परमसंखा ॥१९७ ॥ पणवीस जोयण लहू नारय भवणवणजोइकप्पाणं । गेविज्ज णुत्तराण य, जहसंखं ओहियागारा ॥ १९८॥ तप्पागारे पल्लग, पडहग झल्लरि मुहंग पुष्फजवे। तिरिय मणुएसु ओहि, नाणाविह-संठिओ भणिओ ॥१९९ ॥ उठें भवण-वणाणं, बहुगो वेमाणियाणहो ओही । नारय जोइस तिरियं, नर-तिरियाणं अणेगविहो ॥२०० ।। इय देवाणं भणियं, ठिइ-पमुहं नारयाण वुच्छामि। इगतिणि सत्त-दस-सतर, अयर बावीस-तित्तीसा ॥२०१ ॥ सत्तसु पुढवीसु ठिई, जिट्ठोवरिमाय हिट्ठपुहवीए । होइ कमेण कणिट्ठा, दसवास सहस्स पढमाए ॥ २०२ ।। नवइ सम सहस लक्खा, पुव्वाणं कोडि अयरदस भागा। इक्किक्क भाग वुड्डि, जा अयरं तेरसे पयरे ॥ २०३ ॥ ૨૫૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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