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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लवसत्तहत्तरीए, होइ मुहूत्तो इमम्मि ऊसासा । सगतीस सय तिहुत्तर, तीसगुणा ते अहोरत्ते ।। १८० ॥ लक्खं तेरस सहसा, नऊयसयं अयरसंखया देवे । पक्खेहि ऊसासो, वाससहस्सेहिं आहारो ।। १८१ ॥ दसवास सहस्सुवरिं, समयाई जाव सागरं ऊणं । दिवसमुहूत्तपुहुत्ता, आहारूसास सेसाणं ॥ १८२ ॥ सरीरेणोयाहारो, तयाइफासेण लोमआहारो । पक्खेवाहारो पुण, कावलिओ होई नायव्वो ॥ १८३ ॥ ओयाहारा सव्वे, अपजत्त पजत्त लोमआहारो। सुरनिरय एगिदिविणा, सेस भवत्था सपक्खेवा ॥ १८४॥ सच्चित्ताचित्तोभय, रूवो आहार सव्वतिरिआणं। सव्वनराणं च तहा सुरनेरइयाण अच्चित्तो ॥१८५ ॥ आभोगाणाभोगा, सव्वेसि होइ लोम आहारो। निरयाणं अमणुण्णो, परिणमइ सुराण स मणुण्णो ॥ १८६ ॥ तह विगल नारयाणं अंतमुहत्ता स होइ उक्कोसो। पंचिंदि तिरि नराणं, साहाविय छट्ठ अट्ठमओ || १८७ ।। विग्गहगइमावण्णा, केवलिणो समुहया अजोगी य । सिद्धा य अणाहारा, सेसा आहारगा जीवा ॥ १८८ ॥ केसट्ठि मंस नह रोम रुहिर वसचम्म मुत्त पुरिसेहिं । रहिया निम्मल देहा, सुगंधि नीस्सास गय लेवा ॥१८९ ।। अंतमुहुत्तेणं चिय, पज्जत्ता तरुण पुरिस संकासा। सव्वंगभूसणधरा, अजरा निरुया समा देवा ॥१९० ॥ अणिमिसनयणा मणकज्ज साहणा पुप्फदाम अमिलाणा । चउरंगुलेण भूमि, न छिर्विति सुरा जिणा बिंति ॥ १९१ ॥ ૨૫૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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