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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ३९४ ॥ ॥ ३९५ ॥ ॥३९६ ॥ ॥ ३९७ ।। ॥३९८ ॥ ॥३९९ ॥ जा जम्मि होइ भवधारणिज्जओगाहणा य नरएसु । सा दुगुणा बोधव्वा, उत्तर विउब्वि उक्कोसा भवधारणिज्जरूवा, उत्तरविउब्विया य नरएसु । ओगाहणा जहण्णा, अंगुल असंख संखोउ चउवीसाइ मुहुत्ता, सत्त अहोरत्त तह य पण्णरस । मासो य दो य चउरो, छम्मासा विरहकालो उ उक्कोसो रयणाइसु, सव्वासु जहण्णओ भवे समओ। एमेव य उव्वट्टण, संखा पुण सुरवस्तुल्ला नर तिरि असंख जीवी, नरए गच्छंति केवि पंचेंदि। अइकूरज्जवसाणे, अहो अहो जाव सत्तमिया असण्णि खलु पढमं, दोच्चं च सरीसवा तइय पक्खी । सीहा जंति चउत्थिं, उरगा पुण पंचमि पुढविं छढेि चइत्थियाओ, मच्छा मणुया उ सत्तर्मि पुढविं । एसो परमुववाओ, बोधव्वो नरय पुढवीसु वालेसु य दाढीसु य, पक्खीसु य जलयरेसु उववण्णा । संखिज्जाउ ठिइया, पुणो वि नरयाउ आहंति छेवढेण उ गम्मई, पुढवीओ रयणसक्कराभाओ। एक्किक्क पुढवी वुड्डी संघयणे कीलियाइए काउ नीला किण्हा, लेसाओ तिण्णि हुंति नरएसु । तइयाए काउ नीला, निला किण्हा य रिट्ठाए काउ काउ तह काउ, नील नीला य नील किण्हा य । किण्हकिण्हा य तहा, सत्तम पुढवीसु लेसाओ देवाण नारयाण य, दव्वलेसा हवंति एयाओ। भाव परावत्तीए, पूण सुरनेरइयाण छल्लेसा ॥४०० ॥ ॥ ४०१ ।। ॥ ४०२ ॥ ॥ ४०३ ॥ ॥ ४०४ ।। ॥ ४०५ ॥ २30 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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