________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥
९
॥
पंच नव दुण्णि अट्ठा-वीसा चउरो तहेव बायाला । दुण्णि अ पंच य भणिया, पयडीओ आणुपुव्वीए बंधोदयसंतंसा, नाणावरणंतराइए पंच । बंधोवरमेवि उदय, संतंसा हुंति पंचेव
।। ७॥ बंधस्स य संतस्स य, पगइट्ठाणाइ तिण्णि तुल्लाई। उदयट्ठाणाइँ दुवे, चउ पणगं दसणावरणे
॥८॥ बीआवरणे नवबंधएसु, चउपंचउदय नवसंता । छच्चउबंधे चेवं, चउबंधुदए छलंसा य उवरयबंधे चउ पण, नवंस चउरुदय छच्च चउ संता। वेअणिआउयगोए, विभज्ज मोहं परं वुच्छं
॥ १० ॥ गोअम्मि सत्त भंगा, अट्ठ य भंगा हवंति वेअणिए । पण नव नव पण भंगा, आउचउक्के वि कमसो उ ॥ ११ ॥ बावीस इक्कवीसा, सत्तरसं तेरसेव नव पंच। चउ तिग दुगं च इकं, बंधट्ठाणाणि मोहस्स
॥१२॥ एगं व दो व चउरो, एत्तो एगाहिआ दसुक्कोसा । ओहेण मोहणिज्जे, उदयट्ठाणाणि नव हुंति
॥१३॥ अट्ठय-सत्तय-छ-च्चउ-तिग-दुग- एगाहिआ भवे वीसा । तेरस बारिकारस, इत्तो पंचाइ एगूणा
॥ १४॥ संतस्स पयडिठाणाणि, ताणि मोहस्स हुंति पण्णरस । बंधोदयसंते पुण, भंग विगप्पा बहू जाण
॥ १५ ॥ छब्बावीसे चउ इगवीसे, सत्तरस तेरसे दो दो। नवबंधगे वि दुण्णि उ, इक्किक्कमओ परं भंगा
॥ १६ ॥ दस बावीसे नव इगवीसे, सत्ताइ उदय कम्मंसा । छाई नव सत्तरसे, तेरे पंचाइ अठेव
॥१७॥
૧૧
For Private And Personal Use Only