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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इय गाहाए एवं भावत्थं परिकहंति सुत्तधरा । जह दिट्ठिवायअंगे अग्गेणीए दुइयपुव्वे ॥ ११०० ।। पणिधिकप्पाभिहम्मि पंचमवत्थुम्मि कम्मपयडि त्ति। इय नामेण पसिद्धति पाहुडं सुयविसेसो त्ति ॥११११ ॥ आसि तओ ठाणाओ उद्धरिओ एस सयगगंथो त्ति । सिवसम्मसूरिणाणेगवायजयलद्धसद्देण ॥ १११२ ॥ इय कम्मपयडिपगयं ति कम्मपयडीउ सुयविसेसाओ। अंतरगयंति सयगं गंथं इह वक्कसेसो त्ति ॥१११३ ॥ संखेवेणुद्दिटुं कहियं तह निच्छियं अवभिचारि । पहुयत्थं ति महत्थं जो उवजुज्जेइ बहुसो त्ति ॥१११४ ॥ जो उवओगं पुण पुण नेइस्सइ चिंतणाइदारेणं । सो नाही जाणिस्सइ अत्थं बंधस्स मोक्खस्स ॥१११५ ॥ अत्थं परमत्थं पुण बंधो कम्माण दुक्खहेउ त्ति । जीवाणं मोक्खो पुण सासयसिवमोक्खसंजणगो ॥१११६ ॥ अत्थं च इमं नाउं बंधस्स उ कारणेण परिचाओ। मोक्खस्स कारणेणं गहणे जत्तं करिस्संति ॥ १११७॥ तं काऊणं निद्दड्डअट्ठकम्मिंधणा महासत्ता । निस्सेसभयविमुक्का अइरा सिद्धि लहिस्संति ॥ १११८ ॥ सिरिवद्धमाणगणहर-सीसेहि विहारुगेहि सुहबोहं । एवं शिरिचक्केसर-सूरीहि सयगगुरुभासं ॥१११९ ॥ गुणहरगुणधरनामगनिययविणेयस्स वयणओ रइयं । सुयणे सुणंतु जाणंतु बुहजणा तह विसोहंतु ॥११२० ॥ सत्तनवरुद्दमियवच्छरम्मि विक्कमनिवाउ वटुंते । कत्तियचउमासदिणे गोल्लविसयविसेसणे नयरे || ११२१ ॥ ૧૧૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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