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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दहिवद्दमी सिरिसिद्ध रायभूवइपसायगेहस्स । अण्णलदेवनिवइणो सुहरज्जे वट्टमाणम्मि निप्फत्तिमुवगयमिणं ता नंदउ जाव सिद्धिसुहमूले । तियलोक्कपायडजसो जिणवरधम्मो जए जयइ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ लघुशतकभाष्यम् ॥ मिऊण जिणं वृच्छामि बन्धसयगे चउण्ह बन्धाणं । दाराणि तहा संखामित्तनिविट्ठा उ पयडीओ तह साइआइ पच्चय सुहासुहं सामि घाइय अघाई । भांति ठाण पच्चय विवागभेया य रसबन्धे कम्मपरसग्गहणविहि भाग तह साइआइ सामित्तं । rors पएसबन्धे ठिइबन्धऽद्वारस इमाओ ॥ १ ॥ पढम पए पगइए (पगइबन्धे) साइआई भुयग्गारमाई सामित्तं । साईआई सुहअसुहपच्चयं सामिणो बीए ॥ २ ॥ संजलण नाण दंसणचक्क विग्घाणि पण्णरस एया। नरतिरिनरयाउरेविगलरे सुहुमतिग विउव्विछकाणि छेव उज्जोयं तिरिओरालियदुगाणि छप्पयडी । तिण्णि पयडी उ आयवथावरए गिंदिजाईओ छप्पयडी उ विउव्वियछक्कं इत्तोऽणुभागबंधम्मि । अगुरुलहु कम्मतेयगसुवण्ण चउ निमिण अट्ठ इमा मिच्छ कसाय दुगंछा भय दंसण नाण विग्ध उवघाया । असुभा च वण्णाई तेयालीसा इमा होइ ૧૧૮ For Private And Personal Use Only ॥। ११२२ ॥ ॥। ११२३ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ 114 11 ॥ ६ ॥ 116 11 11 2 11
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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