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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जोगागाहा जोगो हेऊ पयडीण तह पएसाणं । जं भणियं तहि मिच्छाविरइकसाया वि हेउ त्ति जइवि हु सामण्णेण भणिया उ तहावि तेसि विरहे वि । उवसंतागुणेसुं केवलजोगस्स भावे वि वेयणियकम्मपगई तस्स पसाया य जेण बज्झते । चउदसमगुणे जोगाभावे पुण नेव बज्झति इय अण्णयवइरेगाओ पयडीणं परसाणं । बंधस्स जोग एव हि पमुहं किर कारणं होई जोगसरूवं च इमं भणति सुहुमस्स किर निगोयस्स । अह थोवविरियलद्धीजयन्स जे किर जियपएसा as far अपवरिया केइ वि बहुबहुतमाइविरियजुया । तहि सव्वअप्पवीरियजुत्तस्स वि किर पएसस्स जं होई किर विरियं तं पण्णाछेयणेण छिज्जंतं । अस्संखलोग आगासदेससंखा उ भागाओ देई तस्सेवोक्किट्ठ - विरियजुत्तम्मि किर पएसम्मि । जं विरियं तं तेसिं अस्संखगुणं जओ उत्तं पण्णाए छिज्जेता असंखलोगाण जत्तियपएसा । तत्तियविरियविभागा जीवपएसम्मि एक्केके सव्वजहण्णगविरिए जीवपएसम्मि एत्तिया संखा । तत्तो असंखगुणिया बहुविरिए जियपएसम्मि वीरियवग्गणफड्डगअसंखगुणणेण जोगठाणेगं । अस्संखा तेसिं भावत्थो वित्तिओ नेओ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पज्जत्ता सव्वे विहु जहण्णजोगम्मि निययजोगम्मि । जहणेणेगं समयं हुंतुक्कोसं तु चउसमया १०७ For Private And Personal Use Only ।। ९९० ।। ।। ९९१ ।। ॥ ९९२ ॥ ॥ ९९३ ॥ ॥ ९९४ ॥ ।। ९९५ ।। ॥ ९९६ ॥ ।। ९९७ ।। ॥ ९९८ ॥ ॥ ९९९ ॥ ॥ १००० ॥ ॥ १००१ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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