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॥ ९८० ।।
बझंते तिरियाण उ तित्थयराहारसंभवो नत्थि। बंधं तो किर तेसुं लभंते अप्पभागाओ
|| ९७८ ॥ इय ते वि हु नाहिगया मणुयस्स उ अट्ठवीसबंधम्मि। बहुभागा लब्भंती सो वि न घेप्पइ तहा तीसा ॥ ९७९ ॥ इगतीसा वि य बंधा सुरगइजोगा उ संजयस्सेव । हुंती जहुत्तवीरियअभावओ ते वि नो गेज्झा सुरगइजोगा नामे अण्णे बंधा वि संति नो केइ । इयपरिभाविय इग-तीस(इगुणतीस) बंधगस्सेव मणुयस्स ॥ ९८१ ।। गहणं कयंति तिरिओ पज्जअसण्णी उ सुरगईजोगा। एयं पयडिचउक्कं बंधइ नवरं तहिं विरियं
॥९८२ ।। बहुगं तेण न गेज्झो जेणं अप्पज्जसण्णिजोगा उ। जोगो पज्जत्तासण्णिस्स उ खुड्डो वि असंखगुणो ॥ ९८३ ।। सुहुमो भवे सेसा इमस्स वयणस्स उ एस भावत्थो। पत्थुयगाहुत्ताणं पयडीण इगारसाणं जा सेसा नवुत्तरस्सयरूवा पयडीउ आसज्ज । सुहुमो निगोयजीवो अप्पज्जो अप्पविरिओ य ॥ ९८५ ॥ भवपढमगसमयम्मी पवट्टमाणो उ बंधगो होइ । जहुण्णाण पएसाणं अज्झाहारो इमो कज्जो
॥ ९८६॥ पयडीण बंधभावा सव्वासि सव्वअप्प विरियस्स । एत्थेव य सब्भावा एसो बंधाइमो होइ
।। ९८७॥ सत्तरस सुहुमप्पभिई गाहाचउगं इमं समक्खायं । तब्भणणाओ एस पएसाण गहणविहीदारं
।। ९८८॥ अह पयडीण ठिईणं अणुभागाणं तहा पएसाणं । बंधं कुणंति जीवा हेऊहिं जेहिं ते भणिमो
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