SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जहण्णेणं इगसमयं उक्कोसेणं तु दुण्णि उक्कोसे। मज्झिमजोगम्मि जहण्णओ उ समयं तहुक्कोसं ॥ १००२ ।। कइया बितिचउपंचछसगट्ठसमयाउ जाव वते । अपज्जतया उ सव्वे एगम्मि जोगठाणम्मि ॥ १००३ ॥ इगसमयमेव अच्छंति तो असंखेज्जगुणपवुड्डीए । पइसमयं उक्कोसग-जोगट्ठाणेसु वटुंति ॥ १००४ ॥ ठिइअणुभागं वयणे ठिइअणुभागाण किर कसाया उ। बंधस्स हेउणो किर हवंति तहिं ठिइठाणेण ॥१००५ ।। किंचि सरूवं एयं नाणा जीवाण किर जया हुंति । उदयम्मि सम्पराया नाणावरणाइकम्माणं ॥१००६ ॥ ठीईए निव्वत्तणगाणि तया संखयाण लोगाण । जे आगासपएसा असंखया तप्पमाणाई ॥ १००७॥ अंतोमुहुत्तमेत-ज्झवसायट्ठाणगाणि जणयंति। तो समयाहिय जहण्णट्ठिइए जणगाणि उ कसाया ॥१००८ ॥ तेहिं तो ताणि विसेसहियाणि तओ उ दुसमयहियाए । ठीईए जणगाणि उ विसेसअहियाणि जावंति ॥१००९ ॥ एवं तिसमयपभिई अहियठिईए विसेसअहियाणि । भणियव्वाणि य एवं सव्वुक्कोसा ठिई जाव ॥१०१० ॥ ते वि य असंखलोगागासपएसप्पमाणया कमसो। ठिइबंधज्झवसायट्ठाणाणि विसेसवुड्ढाणि ॥ १०११ ॥ हुंति य ते वि य ठावि-ज्जंता किर वि समचउरसं खेत्तं । दरिसंती तहि पढमय-पंतीइ असंखयाणं तु ॥१०१२ ॥ चत्तारि तओ बीयाइ पंच तइयाइ छच्च एगाई। जा उक्कोसा उ ठिई अट्ठहि बिंदूहि निप्पण्णा १०८ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy