SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ८८२ ॥ ॥ ८८३॥ ॥८८४ ॥ ।। ८८५ ॥ ॥ ८८६ ॥ ॥८८७॥ नो बंधइ तो तेसिं भागो अहिगोत्थ लब्भई । ईई सुहुमस्स कयं गहणं उक्कोसबंधसामित्तं मूलपयडीण एयं वुत्तं अह तेसिमेव पभणेइ । जहण्णपएसबंधाण सामियत्तं समासेणं सुहुमगाहाए सव्वं सुगमं नवरं तु सुहुमनिगोओ। अप्पज्जत्तजिओ नियआउगस्स भागद्गेव गए तइयभागस्स पढमे समयम्मि आउसहियमट्ठविहं । बंधं बंधतो आउ-गस्स जहण्णं कुणइ बंधं सत्तण्हं पुण पढमे जं भणियं तं भवस्स पढमम्मि । समए एक्कं समयं जहण्णबंधं कुणइ जीवो उक्किडेयरजहण्णपएसबंधस्स सामिणो भणिया । मूलप्पयडीणं अह उत्तर-पयडीण संबंधे उक्किद्वेयरभेयाण सामिणो अह कमेण पभणेइ । सत्तरसमाइयाहिं गाहाहिं चउहि संखेवा विग्घं नाणावरणं पणगं दंसणचउक्क सा उच्च । जसकीत्ति सत्तरसणं सुहुमो उक्किट्ठजोगे य वटुंतो उक्कोसं पएसबंधं करेइ मोहाउं। नो बंधइ तो तेसिं णं लब्भइ तह य सेसस्स अब्बज्झमाणदंसणपणस्स भागो उ दंसणचउक्के । सेसनामस्स भागो जसकित्तीए हवइ अहिगो इय हेऊओ सुहुमगगहणं पुंवेयसंजलणचउक्कं । इय पणगस्स नियट्टी उक्कसजोगो उ उक्कोसं बंधं विहेइ तत्थ य इय पंचप्पयडिबंधगो बंधं । पुंवेयस्सुक्कोसं बंधं पकरेइ तत्थ विय ॥८८८॥ ॥८८९ ॥ ।। ८९० ॥ ।। ८९१ ॥ ।। ८९२ ॥ ।। ८९३॥ ૯૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy