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काउं उज्जोयगरं, चितिय पारेइ सुद्धसम्मत्तो। पुक्खरखरदीवडं, कड्डइ सुयसोहणनिमित्तं पुण पणवीसुस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरिया-फलाण सिद्धाण पढइ थयं अह सुयसमिद्धिहेउं, सुयदेवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमोक्कारं, सुणइ वदेइ व तीइ थुयं एवं खेत्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देवथुई । पढिउं च पंचमंगलं, उवविसइ पमज्ज संडासं पुव्वविहिणेव पेहिय पुत्तिं दाऊण वंदणं गुरुणो। इच्छामो अणुसष्टुिं ति, भणिय जाणूहिंतो ठाइ गुरुथुइ-गहणे थुइ तिण्णि वद्धमाणक्खरस्सरा पढइ । सक्कत्थय थवं पढिय, कुणइ पच्छित्त उस्सग्गं एवं ता देवसियं, राइयमवि एत्थमेव नवरि तहिं। पढमं दाउं मिच्छा-दुक्कडं पढइ सक्कत्थयं उट्ठिय करेइ विहिणा, उस्सग्गं चिंतिए य उज्जोयं । बीयं दसणसुद्धीए, चिंतए तत्थवि तमेव तइए निसाइयारं, जहक्कम चिंतिऊण पारेइ । सिद्धत्थयं पढित्ता पमज्जसंडासमुवविसइ पुव्वं व पुत्तिपेहण-वंदणमालोयसुत्तपढणं च । वंदण-खामण-वंदण-गाहातिगपढणमुस्सग्गो तत्थ य चिंतइ संजम-जोगाण न जेण होइ मे हाणी। तं पडिवज्जामि तवं, छम्मासं ता न काउमलं एगाइ इगुणतीसूणयंपि न सहो न पंचमासमवि। एवं चउ ति दुमासं, न समत्थो एगमासंपि
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