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जा तंपि तेरसूणं, चउसइमाइ तो दुहाणीए । जाव चउत्थं तो आयंबिलाइ जा पोरिसि नमो वा ॥ ३१ ॥ जं सक्कइ तं हियए, धरित्तु पारित्तु पेहए पुत्तिं । दाउं वंदणमसढो, तं चिय पच्चक्खए विहिणा ॥ ३२ ॥ इच्छामो अणुसलुि ति भणिय उवविसिय पढइ तिण्णि थुइ । मिउसद्देणं सक्कत्थयाइतो चेइए वंदे
॥ ३३॥ अह पक्खियं चउद्दसिदिणम्मि पुव्वं व तत्थ देवसियं । सुत्तंतं पडिक्कमिउं तो सम्ममिमं कमं कुणई
॥ ३४॥ मुहपोत्ती वंदणयं संबुद्धा-खामणं तहा लोए । वंदण पत्तेय खामणाणि वंदणयमह सुत्तं च
॥ ३५ ॥ सुत्तं अब्भुट्ठाणं उस्सग्गो पोत्ति वंदणं तह य । पज्जंति य खामणयं तह चउरो थोभवंदणयं
|| ३६ ॥ पुव्वविहिणेव सव्वं, देवसियं वंदणाइ तो कुणइ। सिज्जसुरी उस्सग्गे, भेओ संतित्थय पढणे य एवं चिय चउमासे, वरिसे य जहक्कम विही णेओ। पक्ख-चउमास-रिसेसु नवरि नामम्मि नाणत्तं तह उस्सगुज्जोया बारसवीसा समंगलगचत्ता । संबुद्धा खामणं ति-पण-सत्त-साहूण जहसंखं ॥ ३९ ॥
॥ ३७॥
॥ ३८॥
पू.आ.श्री जिनप्रभसूरिकृता
॥ मालोपबृहंणा ॥ सावज्जकज्जवज्जणनिट्ठरणुट्ठाणविहिविहाणेण । दुक्करउवहाणेणं विज्जा इव सिज्झए माला
॥ १॥
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