________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥८
॥
॥ ९
॥
WI
॥ १० ॥
तत्थ य धरेइ हियए, जहक्कम दिणकए अईयारे। पारेत्तु नमुक्कारेण पढइ चउवीसथयदंडं
॥७॥ संडासगे पमज्जिय उवविसिय अलग्गविययबाहुजुओ। मुहणंतगं च कायं, च पेहए पंचवीस इहा उट्ठिय ठिओ ,सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं । बत्तीसदोसरहियं, पणुवीसावस्सगविसुद्धं थद्ध-पविद्ध-मणाढिय परिपिडिय - मंकुसं झसुव्वत्तं । कच्छवरिंगिय टोलगइ ढड्ढरं वेइयाबद्धं मणरुट्ठ-दुट्ठ-तज्जिय, सढ-हीलिय-तेणियं पडणियं च। दिट्ठ-मदिटुं सिंगं, करमोअण-मूण-मूर्य च
॥ ११ ॥ मय-मित्ती गारव-कारणेहि पलिउंचियं भयं तं च । आलिट्ठ-मणालिटुं, चूलिय चुडुलित्ति बतीसा ॥ १२ ॥ दुपवेसमहाजायं, दुओणयं पयडबारसावत्तं । इग निक्खमंति गुत्तं, चउसिर नमणं ति पणुवीसा ॥ १३ ॥ अह सम्ममवणयंगो करजुय विहि धरिय पोत्तिरयहरणो परिचितिए इयारे, जहकम्मं गुरुपुरो वियडे । अह उवविसित्तु सुत्तं, सामाइयमाइयं पढिय पयओ। अब्भुट्ठिओमि इच्चाइ, पढइ दुह उट्ठिओ विहिणा ॥१५॥ दाऊण वंदणं तो, पणगाइसु जइसु खामए तिण्णि । किइकम्मं करियट्ठिओ, सड्ढो गाहातिगं पढइ
॥ १६ ॥ इह सामाइय उस्सग्ग-सुत्तमुच्चरिय काउसग्गठिओ। चिंतइ उज्जोयदुर्ग, चरित्तअइयारसुद्धिकए
॥१७॥ विहिणा पारिय सम्मत्तसुद्धिहेउं च पढिय उज्जोयं । तह सव्वलोय अरिहंतचेइयाराहणुस्सग्गं
।। १८॥
॥ १४॥
પપ
For Private And Personal Use Only