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॥४९॥
केवलिणा दिवाणं उवइट्ठाणं च विरइयाणं च । नवकारमाइयाणं महप्पभावो व वेयाणं तिक्कालियमहवा सत्तकालियं सुमरणे निउत्ताणं जुत्तं चिय उवहाणं महानिसीहे निबद्धाणं उवहाणविहीणाण वि मरुदेवाईण सिवगमो दिट्ठो। एवं च वुच्चमाणे तवदिक्खाईण वि निसेहो इय भूरिहेउजुत्तीजुयम्मि बहुकुसलसलहिए मग्गे । कुग्गहविरहेणुज्जमह महह जइ मोक्खसुहमणहं
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पू.आ.श्रीजिनवल्लभसूरिविरचिता
॥ प्रतिक्रमण-समाचारी ॥ सम्मं नमिउं देविंदविंदवंदियपयं महावीरं । पडिकमणसमायारी, भणामि जह संभरामि अहं पंचविहायारविसुद्धिहेउमिह साहू सावगो वावि । पडिकमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्कोवि वंदित्तु चेइयाई, दाउं चउराइए खमासमणे। भूनिहियसिरो सयलाइयार-मिच्छामिदुक्कडं देइ
॥३॥ सामइय पुव्वमिच्छामि ठाइउं काउसग्गमिच्चाई सुत्तं भणिय पलंबियभुयकुप्परधरिय परिहणओ संजइ-कविठ्ठ-धण-लग्ग-लंबुत्तर-खलिणि-सवरि-बहु-पेहा । वारुणि-भमुहं-गुलि-सीस-मूय-हय-काय-नियलुद्धी ॥५॥ थंभाइदोसरहियं, तो कुणइ दुहूसिओ तणुस्सग्गं । नाभिअहो जाणुद्धं, चउरंगुलठविय कडिपट्टो
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