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एयं पि जस्स गरुअंगरुअंकम्माण संचयं तस्स। लहुअं पि धम्मकजं अइगरुअं गरुअकम्माणं इय दारुणदुक्खिंधणवालय जिणचंदवंदचलणेसु । जो कुणइ परमभत्ती नित्थिण्णो तेण संसारो जिणपूआ-भत्तीए सुसाहुजणपज्जुवासणाए य । उत्तरगुणसद्धाए अपमाओ होइ कायव्वो इण्डिं विरला पुरिसा धम्मपरा पावकयवरविलित्तं । जे निव्ववंति लोअंजिणधम्मुवएससलिलेण
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२॥
॥ पोषधविधि संग्रहणीगाथाः ॥ वत्थाइअ पडिलेहिय, सड्ढो गोसम्मि पेहिउं पोत्तिं । नवकारतिगं कड्ढिउमिय पोसहसुत्तमुच्चरइ
॥१॥ सामाइयं पगिव्हिय कयपडिकमणो य कुणइ पडिलेहं । अंगपडिलेहणं पिय कडिपट्टय-ठावणायरिए उवहिमुहपोत्ति-उवहीपोसहसालाइपेहसज्झाओ । पुत्तीभंडुवगरणस्स पेहणं पउणपहरम्मि
॥३॥ चेइयचियवंदण-पुत्तिपेहणं भत्तपाणपारवणं । सक्कथय-भोयण-सक्कत्थयग-वंदणय-संवरणे आवस्सियाइगमणं सरीरचिताइ-आगमनिसीही। काऊं गमणागमणालोयणमह कुणइ सज्झायं तह चरिमपोरिसीए विहीइ पडिलेहणंगपडिलेहे। कडिपट्ट-वसहिपेहा-ठवणायरिउवहिमुहपोत्ती
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