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पुच्छेइ मुणिवराणं सुहराइयमाइयं सरीरविहिं। भूमि पमज्जिऊणं उवविसइ साहुमूलम्मि
॥९॥ अपुव्वं जिणवयणं सुणेइ तत्तिं करेइ जिणभवणे। पणरसकम्मादाणे वज्जेवि करेइ घरकम्म
॥ १०॥ भोअणकाले पूणरवि घरपडिमा पूइऊण कुसुमेहिं । उग्गाहिऊण धूवं नेवज्जं ढोयए सव्वं
॥ ११ ॥ तह साहू-सावयाणं दुत्थिय-दुहियाण बाल-वुड्डाणं भत्तिइ देइ दाणं विहिणा भुंजइ सपरिवारो
॥ १२ ॥ भुंजइ पुणो वियाले अट्ठमभाए दिणस्स नियमेण । नियपरिवारस्स तहा एस विहि दसए निच्चं
॥ १३ ॥ जिणपडिमाण निसाए धूवं उग्गाहिऊण भावेण । पडिवज्जियसमभावी सज्झायं कुणइ भवभीओ ॥१४॥ दुपय-चउप्पय-धण-धण्ण-वत्थु-दिसि-भोग-गहिय परिमाणो । दिण-वरिस-जम्म नियमो निउणं पइदियहमणुसरइ . ॥१५॥ तह साहु-सावयाणं दुत्थिय-दुहियाण वाल-बुड्डाणं । पुच्छिंतो य समत्थं वेयावच्चं कुणइ हिट्ठो पंचविह विसय सुक्खं उवभुंजइ परिमिएसु दिवसेसु । तिव्वाभिलासविरओ बंभरओ पंचसु तिहीसु ॥१७॥ चिंतइ सयणम्मि ठिओ सुहज्ज्ञाणं इत्थ भवसमुद्दम्मि। कह वि भमंतेण मए लद्धो जिणदेसिओ धम्मो ॥ १८॥ ता संसारसमुदं तरेमि जिणधम्मजाणवत्तेण । अक्खयनिव्वाणपुरे सासयसुक्खं लहिस्सामि
॥ १९ ॥ इय पवरगुणड्डयविरइयाइ पवराए सावगविहीए। संखेवेणा वि मए वागरियं मंदमइणा वि
॥ २० ॥
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