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इय पच्छित्तविहाणं जीयाओ पिंडदोससंबद्धं । जिणपहसूरीहिं इमं उद्धरियं आयसरणत्थं जं किंचि इत्थणुचियं अण्णाणाओ मए समक्खायं । तं मह काऊण दयं गुरुणो सोहिंतु गीयत्था
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कविराजश्रीधनपालेन विरचिता
॥श्रावकविधिः ॥ जत्थ पुरे जिणभवणं समयविऊ साहु-सावया जत्थ । तत्थ सया वसियव्वं पवरजलं इंधणं जत्थ पडिबुद्धेण पहाए नवकारो सावएण सरियव्वो। संभरियव्वाइं तओ पंचेव अणुव्वयवयाई पक्खालियकर-चरणो कडिल्लवत्थं चएइ सुइभूओ। घरपडिमाउ जिणाणं पमज्जए वयणकयकोसो कुसुमेहिं पूइऊणं धूवं उग्गाहिऊण भावेण । विहिणा वंदेइ तओ पच्चक्खाणं तओ सरइ पुणरवि कयसिंगारो धूव-क्खय-सुरहिकुसुमकयहत्थो । वच्चइ जिणिंदभवणे परिहरियासेसघरकम्मो सव्वालंकार-सचित्त-वाहणाईणि सवचिधाणि । मुत्तूण सीहवारे पविसइ कयउत्तरासंगो जय जय जयं भणंतो नमेइ तिपयाहिणं करेऊणं । पुणरवि कयमुहकोसो करेइ पुयं जिणिदाणं उग्गाहिऊण धूवं पंचहिं सक्कत्थएहि वंदित्ता । वंदेइ मुणिवरिंदे पच्चक्खाणं पुणो सरइ
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