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॥४१॥
चेइयवंदणसद्दो, अस्थि उवंगम्मि (श्री जीवाभिगमउपांगे) जस्स अहिगारे। तत्थेव चेइयाई, चारणसमणा पणिवयंति
॥३६ ॥ नंदणवणम्मि पंडगवणम्मि, तह चेइयाई वंदति । पंचम अंगे एयं, सत्ता पडिमाणुवंगम्मि (जंबूदीवपण्णति उपांगे) ॥ ३७॥ वंदति चेइयाई, इह जं भणियं जिणेहिं तत्थेव । तस्सुत्तरं उवंगे, (उववाइ उपांगे) चंपापुरि वण्णगे जाण ॥ ३८ ॥ अरिहंत चेइयाणं, वंदणयं अंबडस्स विहिवाया। उववाइए उवंगे, नायं जिणवीर भणियंति
॥ ३९ ॥ चेइय वेयावच्चं, दसमे अंगे जिणेहिं पण्णत्तं । विहिवाया ता जाणह, गुणाण उठभणं एयं
॥ ४० ॥ गुरुणो य अणापुच्छा, पुव्वं न हु किंपि कप्पइ जइणं । एयं भणियं सुत्ते, असद्दहंताण मिच्छत्तं आवस्सिया निसीही, अणुजाणणमुग्गहस्स तह काउं। निक्खमणं च पवेसे, भंतेत्ति भणित्तु जं करणं ॥४२॥ निंदण गरिहण आलोयणाइ, तह वंदणं पडिक्कमणं ।। इच्चाइ अप्पमाणं दीसइ विरहे विणा ठवणं
॥ ४३॥ आवस्सयस्स करणे, जे पुण किझंति बारसावत्ता । तत्थ य कायप्फासो, गुरुं विणा पुत्तियाइणं जइ पुत्तियाइ फासो, सो खमणिज्झो कहिज्झए कस्स। जइ खमणिज्झो ठहिउं, तो गुरुठवणा वि निब्भंतं ॥४५॥ वायणपमुहो भणिओ, जिणेहिं मुणिणा अवस्स करणिज्झो। पंचविहो सज्झाओ, कम्माणं निज्झट्ठाए
॥४६॥ तत्थ वि पुत्थयपुरओ, किज्झइ सिक्खिय ठियाइ गुरुवझं । एवं पि कीरमाणे, भावावस्सयमिणं मुणह
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