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सव्व - जिएसु वि दय करहिं, एस सधम्मह मूलु । विहूणउ तवु जवु वि, सव्वु वि भव- अणुकूलु अलियउँ वयणु न भासियइ, दोस - सहस्स - निवासु । जेण हणिज्जइ सुह-निलउ, सव्वत्थ वि वीसासु इह-पर-लोइ विडंबणहँ, विवि जह जइ बीहेहि । ता कइयवि पर-धण-हरणि, मंजिय मणु विविहेहि जइ उप्पा(?ग्घा) डण कुड्डियउ, पुणु पुणु दुग्गइ - दारु । ता पइ-दिणु सच्छंद-मइ, जिय अहिलसु पर- दारु जइ सोक्खिण्णुहि निव्विण्णु तुहु, जइ संसारिं कज्जु । ता परिगहि अ - पमाणि जि य, सुइरु निरंतर रज्जु
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राई - भोयणु परिहरहु, निय-मणि नियम धरेहु । जेण उवज्जिय सयल गुण, सिव- दिव- लच्छि वरेहु
त्तिहिं हिंडहिं स्यणियर, भुक्खिय रंक - समाण । तर्हि उविट्ठउँ ते जिम्बहि, जे निसि जिम्वहिं अयाण मेह पिवीलिय उवहण, मच्छिय वम्वणु करेइ । जूयलोय स्संजणइ, कोलिउ कोदु वि होइ लग्गिइ गलियइ दुक्खयरू, कंटउ दारुण दारु । भक्खर बालु वि तक्खणिण, सरु भंजइ अइचारु भुंजिज्जंतर वंजणिर्हि, समु अलि विथ [ ?ध] इ तालु । निसिभोयणु बहुविहु हवइ, आमय जालु करालु दिवसि वि जे अइ- सुहुम जिय, अइ-जत्तिण दीसंति । कुंथुं पभिइ दीवाइ सुठि, ते निसि किम्व दीसंति जइकिर केवल - नाणि वि, निसिभोयणु न करंति । ता छउमत्थ पमायपर, किह दूरिण न मुयंति
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