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॥बालावबोधप्रकरणम् ॥ पणमवि जिणवइ देउ गुरू, अनु सरसइ सुमरेवि। धम्मुवएसु पयंपियइ, सुणि अवहाणु करेवि दुलहउ माणुस जम्म लहि, जे नवि धम्मु करंति । ते असरण दुह-सय-कलिय, चिरु संसारि भमंति जुव्वणि भुंजउँ विसय-सुहु, वुड्डउ धम्मु करेसु । एहउँ बाल-पयंपियउ, मा चि...(ते) वि धरेसु वायाहय-धयवड़ समउ, जीविउ चंचलु जेण । बालत्तणि वि विवेइ-जण, धम्मि पयट्टहि तेण इह जुब्बण अविवेय-घरु, सव्व - अणत्थ - निहाणु। एइण जो न विडंबियउ, सो पर भुयणि पहाणु जाव न पीड़इ देहु जर, जाव न वाहहिं वाहि । जा इंदिय सुत्थत्तणउँ, ता सद्धम्मु पसाहि पिय-जणु जुव्वणु धणु सयणु, सयलु वि लोइ असारु । नरइ पडतह पावियह, नावि केणइ साहारु घर-वावारि वि मोहियहँ, सयलु समप्पइ जम्मु । खणुवि न पावहिं पावयर, जित्थु ए साहहि धम्मु थेवउ आउ सुतुच्छु सुहु, पय पय आवय-ठाण । दुक्कड-फलु अइ कड्डु यर, सधम्मु करेसु सुजाण जिणि निज्जिय राणइ रितु, जो इंदिहिं कय सेवु । निम्मलु नाणु पईवु जसु, सो पणमिज्जइ देवु पंच-महव्वय-भूसियउ, परिपूरिउ सुगुणेहि । उवसम-निहि सुय-नीरनिहि, गुरु लब्भइ पुण्णेहि
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