________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥७२॥
॥७३॥
।। ७४॥
।। ७५ ॥
।। ७६ ॥
धम्मा वणे महल्ले पसारिए सव्व वणिय पासंडे। सुपरिक्खिऊण गिण्हह इत्थहु वंचिज्जए लोओ जेसिं पव्वइयाणं धणं च धण्णं च जाण जुग्गं च । कय विक्कएण वट्टइ सो पासंडो न पासंडीओ धम्मलिंगं च से हत्थे ववहारोय वट्टइ। का एसा नाम पवज्जा नेव आडी न कुक्कुडो आडीए मयणमत्ता ए रामिओ वण कुक्कुडो। तेण सपिल्लओ जाओ न च आडी न कुक्कुडो सो चेव य घरवासो नवरि परियत्तिओ य सो वेसो। किं परियत्तिय वेसं विसं न मारेइ खज्जतं सव्वो भणइ च देसे मज्झ कुलं उत्तमं च विउलं च । कह से पत्तिययव्वं सीलेण विसंवयंतस्स सव्वाओवि नईओ कमेण जह सायरम्मि निवडंति । तह भगवई अहिंसा सव्वे धम्मा [समज्जति] तो भे भणामि सव्वे जावंति समागया मम सुणेह। चरह परलोग हिययं अहिंसा लक्खणं धम्मं तो अस्य विरय विमले सयं पहे देव दुंदुहि निनाए । सग्गम्मि चिर वसिहह सुचरियं चरणाचरिह धम्म नाणंकुसेण रुंधह मण हत्थिं उप्पहेण वच्चंतं । मा उप्पह पड़िवण्णो सीलारामं विणासिज्जा
॥ ७७ ॥
॥ ७८ ॥
॥ ७९ ॥
||८०॥
॥ ८१ ॥
૨૨
For Private And Personal Use Only