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जो धरइ अट्ठारस-भेउ बंभु सो चेव सूरु सिवु विण्हु बंभु । नवभेउ परिग्गहु परिहरेइ कोहाइ अभितरु निग्गहेइ अप्पणह पीड जेणेह होइ तं परह न कीजइ जीवलोइ। परिहरई अट्ठारसपावठाण मिल्हेविणु अट्टइं रुद्दझाण जे सव्वहा वि अह देसओ वि भवसायरु तरइं अविग्घु ते वि। महु-मज्ज-मंस-मक्खण-अभक्ख नहु भक्खई जीवदयाइ-दक्ख पंचुंबरि-वइंगण-सूरणाइ तह आमइं गोरसि विदल जाई। जो रयणीभोअणु परिहरेइ तसु जीवदयाइ मुक्खु होइ ॥७॥ जो रयणीभोअणु पच्चक्खाइ तसु अद्धजम्मु उपवासि जाइ । जो दिवसरत्ति खायंतु ठाइ सो सिंगपुछविणु पसूउ भाइ ॥८॥ जहिं दिवसरत्ति न विसेस सत्थि तहिं मूढ धम्मलेसो वि नत्थि। जो दिवस मुत्तु भुंजइ निसाइ सो हारइ कोडि वराडियाइ ॥९॥ जो करइ अधम्म सुधम्मबुद्धि दूरह विपणट्ठा तासु सुद्धि । जो जीवरक्ख नहु मुणइ भेउ तसु नरयपडंतह कवणु खेउ ॥ १० ॥ जहिं जीवदयावरधम्मु जाइ तहिं मूढा लग्गा किम कुढा (ट्ठा) इ। मज्जारघूअसुणकागभुंड हुई रत्तिई जेमा वंकतुंड ॥ ११ ॥ नारय-तिरिक्ख-जोणिसु जंति जे मूढ रयणि-भोअणु करिति । जो जाणइ पुण्णह-पावभेउ सो पुण सुकयत्थउ मणुयदेउ ॥१२॥ दिवसह वि पहिल्ली पच्छिमा वि दोघडिय मुत्तु भुंजइ सया वि। अण्णु वि पुण निसुणहु धम्मसारु जिम तरइ चउग्गइ-भवु अपारु।। १३।। उवसम-विवेग-संवर-पहाणु इंदिय-नोइंदिय-दम-निहाणु । समभावु जो य सव्वर्हि करेइ तं सिद्धि-सुक्खु अप्पणि वरेइ।। १४ ।। जो जाणइ अप्पह परिविसेसु सो पावइ तिहुअणसुहु असेसु। जो घरइ नाण-दसण-चरित्तु तसु नमउं पायपंकयपवित्तु ॥ १५ ॥
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