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॥ २० ॥
माणिक मुत्ति अ मरगय, वइरं च..... करयले बद्धं । अवहरिऊण न सक्का, गंठीए फलं सुसुद्धाए
॥१६॥ जो पोरिसिं च पुरिसो, पच्चक्खइ सव्वकालमज्झत्थो ।
॥ १७ ॥ अरिहंत-चक्कवट्टी-बलदेवाणं च वासुदेवाणं । एएसि पि कुलेसुं, उप्पज्जइ सो सयं पुण्णो
॥ १८॥ पुरिमड्ढं पच्चक्खइ, रूवसिणी महिलिआ व पुरिसो वा।। सो अवरम्मि भवम्मि अ, देवत्तणमुत्तमं लहइ
॥ १९ ॥ तत्तो वि चुओ संतो, उवज्जइ घाइकम्मकम्माई। मणुअभवम्मि अ पामइ, रयणनिहिं बहुविहं पुरिसो एगट्ठाणम्मि ठिओ, बहुविहरयणाण सामिओ होइ । देवत्तणम्मि इंदो, मणुअभवे होइ महयारी
॥ २१ ॥ अपरमिअं सो पावइ, सारीरबलं मणुअलोगम्मि। एगासणगस्स फलं, जिणवरवीरेण निद्दिटुं
|| २२ ॥ तेएण अहिअतेऊ, न वि सक्को जोअणं व्व जोएउं । उत्तत्तकणयवण्णो, आयंबिल कारओ पुरिसो
॥ २३ ॥ जो उववासं पुरिसो, अवसं कारेइ जिणवरमएणं । बप्पुत्तिबुद्धिधुणिअं, सो निहणइ पुराणयं कम्म ॥ २४ ॥ अट्टविहं पि अ गंठी, बारसभेएण तवविहाणेणं । छिज्जइ निखिलं जम्हा, तम्हा उवावासमिच्छंत्ति ॥ २५ ॥
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