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सो तस्स फलगुणेणं, कंचण-मणि-रयणभूसिअसरीरो। दसवाससहस्साई, दिव्वं देवत्तणं लहइ अह पुण जिणवयणं सुणेइ, सद्दहमाणो करेइ तं चेव । सो पलिओवमकोडी, निरुवसागे वसइ सग्गे
॥ ५ ॥ न य पणमइ सो पुरिसो, रायाणं देवयं च अरिहमणो । तिहुअणनमिअं जो नमइ, पच्चक्खइ जो नमुक्कारं भवसयकोडीदुलहं, जर-मरणठिएण जं जिणक्खाणं । आराहइ अ अविघं, पच्चक्खइ जो नमुक्कारं पोरसि छट्ठ चउत्थे (?) काउं कम्मं खवंति जं मुणिणो । तं न हु नारयजीवा, वाससयसहस्सकोडीहिं अंगुट्ठ-मुट्ठिपमुहं, निच्चं पालेइ तह इमं सम्मं । तस्स गुणनिवहरंजिअ, जाया परिणयणकज्जेण मण्णइ तेण वरेणं, निव्वुइकंता करेइ संकेअं। संकेअपच्चक्खाणं, वयंति एअं समासेणं
॥ १० ॥ जे निच्चमप्पमत्ता, गंठिं बंधति गंठिसहिअस्स । सग्गापवग्गसुक्खं, तेहिं निबद्धं सगंठम्मि
॥ ११ ॥ भणिऊण नमुक्कारं, निच्चं विम्हरणवज्जिअंधण्णा। पालंति गंठिसहिअं गठि सह कम्मगंठीहिं
।। १२ ।। मंसासी मज्जरओ, एकेण वि चेव गंठिसहिएणं । सो वि इह तंतुवाओ, सुसाहुवाया सुरो जाओ
।। १३ ।। इअ चितिअ सुअब्भासं, अब्भासं सिवपुरस्स जइ महसि ।। अणसणसरिसं पुण्णं, वयंति एअस्स समयण्णू ॥ १४ ॥ अट्ठविहकम्मगंठी, भवसयबद्धा थिरीकया बहुसो । भिंदइ सो अचिरेणं, पच्चक्खइ जो इमं गंठि
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