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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha योग और साधना केवल इसना सा ही कार्य होता है, इन तथा कथित . साधनाओं के द्वारा। हमारे ऊपर इन्द्रियों का जो जाल फैला हुआ है उनसे हम अपना पीछा छुड़ा लेते हैं, और हम अपने स्वयं की गहराई में उतर जाते हैं । जहाँ से हम अपने भीतर के खजाने की झलक पा लेते हैं। जहाँ अभी तक हम अपने शरीर को ही सारा कुछ मान रहे थे, जबकि मणि तो हमारे भीतर और भीतर छिपी पड़ी है । इसमें जरा भी संशय नहीं है । यहाँ इस सन्दर्भ में एक बात और गहरे से समझ लेनी चाहिए कि किसी एक प्रकार के उदाहरण को ही या किसी एक प्रकार की विधि को ही इस सम्पूर्ण साधना का एकमात्र मार्ग नहीं मान लेना चाहिये । जबकि सत्य तो यह है कि ऐसा कोई भी कार्य जो हमारे मन के अंधेरे को मिटाए, वह हमारे लिए साधना का ही मार्ग सिद्ध होता है। इसलिए ही कोई यहाँ मौन रहकर चंतन्य हो जाता है तो कोई साधक भक्ति के गोत मोरा की तरह गाकर पूर्णता को प्राप्त हो जाता है। भगवान बुद्ध की तरह भूखे प्यासे रहकर कठिन तपश्चर्या करना भी इसी साधना का अंग है। जहां तुलसी का "राम" के नाम पर आधार बना कर अपनी साधना करना ठीक है, वहीं बाल्मिकि की तरह उस राम के नाम को उल्टा करके "मरा" कहना भी ठीक ही है। हम अपने जीवन के किसी भी छोर से तथा किसी भी स्तर से अपनी साधना शुरू करें, हमारे लिये वहीं ले रास्ता बनता. जाएगा । बालक ध्र ब अगर सात साल की उम्र में साधना शुरू करता है तो वह भी सफल होता है और भक्त अजामिल यदि अपने द्वार पर मृत्यु को दस्तक देते . समय अपनी साधना के प्रति सम्पूर्ण भाव सहित समर्पित होते हैं तो उनका वह अकेला नारायण शब्द ही उनको भवसागर से पार करने वाली माना का आधार बन जाता है। इसलिए यह पनी तरह से पमह कि हमारा ऐसा कोई भी पर्व पो बाराहो पाए, इमारी बजी पाति का आधार पने, हमें अपनी बुद्धि धार मनपार के दर्शन करने में हमारी मदद करे, यही हमारी साधना मा धन जाता है। एक देश का समाट अक्ने दुवा पुत्र को तलवार पलाना सिखाना चाहता गा। इसलिए उसने अपने सेनापति को बुलाकर कहा कि "आप हमारी सल्तनत में सर्वयेष्ठ तलवार बाज हैं। इसलिये राजकुमार को अपने सानिध्य में तलबार For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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