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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरू वह है जो होश जगाए, जागृति लाए, मार्ग दिखाए ८६ तब जब उनके सामने उनके अपने कर्मों की गलती प्रगट हो जाती थी। फिर दुखी भी हो रहे थे, साथ ही अपने भाग्य को दोष भी दे रहे थे या अन्य कोई परमात्मा के प्रति कटु शब्दों का उच्चारण कर रहा था। सबसे ज्यादा ये दोनों सन्यासी इस बात से हैरान थे कि जिस कर्म के द्वारा ये लोग अभी थोड़ी देर पहले दुखी थे, वे फिर उसी कर्म को दोहराने को उदयत् हो रहे थे। ये लोग कैसे पागल हैं ? और मजे की बात यह है कि सभी का यही हाल है। कहीं हमारे यहाँ से जाने के बाद यह पूरी की पूरी बस्ती पगला तो नहीं गयी है ? या महीने भर के मौन ने हमको ही तो कहीं पागल नहीं बना दिया है । जब यह बात इन दोनों के किसी भी प्रकार से समझ में नहीं आयी तब उन्होंने हारकर गुरूजी से पूछा । “गुरूजी, क्या इस बस्ती के लोगों ने शराब पी ली है या ये लोग किसी अन्य प्रकार के नशे में है जिसके कारण से वेवकूफी पर बेवकूफी करते ही जा रहे हैं। या हम मैं कुछ परिवर्तन हो गया । यह सारा का सारा माजरा क्या है। कुछ तो समझायें हमें, भगवन्" ? फकीर बोला-- "हाँ तुम ठीक कहते हो ये बस्ती के सभी लोग अपनीअपनी इन्द्रियों के नशे में हैं । इस बस्ती के लोग ही नहीं, सारा का सारा संसार ही इसी प्रकार के मतिभ्रम लोगों से भरा पड़ा है । और तुम्हारे अन्दर भी कुछ न कुछ परिवर्तन हो ही गया है । जिसके कारण से तुम्हारा नशा अब कुछ हल्का हो गया है। इसलिये ही तुम्हें अपने में और उनमें फर्क दिखाई पड़ रहा है। अपनी याद करों, तीस दिन पहले तुम्हें कोई फर्क नजर नहीं आता था। लेकिन आज तुम्हें फर्क नजर आ रहा है । असल में, तीस दिन के मौन के सन्नाटे ने तुम्हारे मन की नींद को तोड़ दिया है, जबकि इससे पहले तुम भी उन्ही इन्द्रियों के सुख की नींद के नशों में बेहोश थे, और इन्ही की तरह की नींद में सोये पड़े थे । आज तुम्हें ऐसा नहीं लग रहा है कि ये सभी लोग इस तरह से अपने कार्य कलाप कर रहे हैं, जैसे ये तो नीद में हो और कोई शैतान इनसे ऊट पटाँग कार्य करवा रहा हो। क्योंकि अभी तो इनके ऊपर इन्द्रिय सुख का पर्दा पड़ा है। इसलिये ये तो अभी ऐसे ही कार्य करेंगे, इसमें कुछ भी आश्चर्य जनक नहीं है। उन तीस दिनों की साधना ने तुम्हारे भीतर होश की लो जगा दी है। जिसके कारण तुम्हारा आन्तरिक ध्यान जागृत हो गया है । महीने भर पहले जो गया था. जंगल. से वही ही वापिस नहीं लौटा है, वहाँ गया तो था तुम्हारा जड़ शरीर, लेकिन अब. वापिस, आये हो तुम स्वयं चैतन्य होकर" For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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