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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ योग और साधना है । जिसे उसने अब अपने अनुभव में पहली बार ही देखा होता है। जिसके कारण से वह बड़ा ही आनन्दित हो जाता है । और उसकी कल्पना में इस आनन्द के बारे में अन्य साथियों को जो कि भवन में नीचे मौजूद हैं उनके लिए बखान करने के लिए अपने पास शब्दों की नितान्त कमी होती है । किस प्रकार के शब्दों से वह इसकी व्याख्या करे ? लेकिन फिर भी गूंगे के द्वारा गुड़ के बारे में बताये जाने की तरह से ही वह उन अपने साथियों को जिनके साथ में वह इस खिड़की तक पहुँचने से पहले तक था अपने स्वभाववश दया करके वहीं ऊपर से बैठे-बैठे ही इस अकथ आनन्द को जैसे-तैसे बताने की कोशिश करता है। आओ इस रास्ते पर जिस पर चलकर मैं यहाँ आया हूँ, तुम सब भी आओ । यहाँ बड़ा भारी आनन्द है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, आदिशंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और न जाने कितने ही सबके सब इसी प्रकार की उच्च अवस्था वाले लोग हैं जो स्वयं तो उस परम सत्ता की खिड़की पर पहुँच गये हैं । लेकिन मुक्ति की खिड़की से उस परम सत्ता के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले वे इस संसार पर करुणा करके इस - मुक्ति के द्वार का रास्ता बताने की कृपा करते हैं । यहाँ एक शंका पैदा होती है कि जब सभी एक ही तरफ आरोहण करते हैं । तब ये सभी के सभी रास्ता अपना अलग-अलग क्यों बता कर जाते हैं ! इस शंका का निवारण भी इसी उदाहारण से समझ में आ जाता है । उस भवन की किसी एक खिड़की पर जो कि पूर्व में खुली है। उस पर मानो कि महावीर पहुँचे हैं उन्हें वहाँ तक पहुँचने में कितने तौर तरीके अपनाने पड़े थे वहाँ जाकर उन्हें जो पूर्व की दिशा की जो आभा दिखाई दी थी । उन्होंने अपने नीचे वाले साथियों को वही बात बताई । इसी प्रकार दूसरी खिड़की पर जो कि पश्चिम दिशा की ओर खुली है। उस पर बुद्ध पहुँच गये हैं उन्होंने वहाँ पहुँचने में शुरू से आखिर तक जो-जो अनुभव किये होंगे बुद्ध ने अपने अधीनस्थों से कहे। हालांकि यह वकतव्य महावीर से भिन्न था क्योंकि उन्हें पूर्व की अपेक्षा पश्चिम की आभा दिखाई दी थी । इस दुनिया में से असंख्य लोग प्रकृति की असंख्य ही खिड़कियों पर पहुँचते हैं। सभी ने इसी कारण से अलग-अलग वक्तव्य इस दुनिया वालों को दिये हैं । इसमें विचित्रता कुछ भी नहीं है । और यही कारण भी है कि हिन्दू धर्म में छत्तीस करोड़ विभूतियों को देवयोनि से विभूषित किया गया है । For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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