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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिगुणातीत अवस्था का बोध ७५ जिक्र जब उन्होंने अपनी बटालियन में आकर किया तो एक बूढ़े से सूबेदार ने बताया, हाँ इस प्रकार की हुलिया का एक कैप्टन बहुत साल पहले दुश्मन की गोली का शिकार उसी क्षेत्र में हुआ था। शायद उसी मत कैप्टन की आत्मा ने आज तुम्हें तुम्हारी मौत से बचाया है । ___ क्यों बचाया था उस मृत कैप्टेन की आत्मा ने इन सैनिकों को ? ये लोग उसके सगे सम्बन्धी तो थे नहीं ? और न ही इन लोगों को पहले से उस कैप्टेन के बारे में कुछ पता था । जिससे हम यह मान लें कि इन्होंने अपने ऊपर आयी संकट की घड़ी के समय अपने मन में उसका स्मरण करके उस आत्मा का आह्वान किया होगा। इसके साथ-साथ उस आत्मा का भी इन सैनिकों के द्वारा कोई स्वार्थ सधता नजर नहीं आता था। सिर्फ एक ही कारण था, उस तथाकथित आत्मा के सम्मुख, वह था उनके प्रति उसकी करूणा ! और अपनी इस करूणा की वृति के कारण ही वह अभी तक पृथ्वी तथा उसके वासियों की ओर आकृष्ट है। अथवा अभी वह आत्मा बहुत गहरे में सात्विको गुणों के स्तर की माया के बन्धन में बंधी है, साथ ही हम यह भी जानलें। इस प्रकार के स्तर की आत्माएं जब भी इस पृथ्वी पर जन्म लेती हैं । तो उनके जन्म लेने का एक मात्र कारण करूणा ही होता है। इसलिए हो वे अक्सर इस जगत में अवतार सिद्ध होती हैं । वे यह जानते हुऐ भी कि करूणा भी एक बन्धन ही है । लेकिन एक बार तो उसे उस सँचित संस्कार से भी भुगत जाने के लिए जन्म लेना ही पड़ता है। तब कहीं जाकर ये अपनी इस सात्विकी प्रवृति पर विजय प्राप्त करती हैं। इसी करूणा के भाव को समझाने के लिए मैं यहाँ एक और उदाहारण लिख रहा हूँ। जिसे अक्सर इसी विषय वस्तु पर बोलते हुये अनन्य वक्ता स्तेमाल करते हैं । एक बड़े से भवन में जिसके सभी दरवाजे बन्द हैं, उसके अन्दर बहुत सारे आदमी भरे पड़े हैं। जिसके कारण वहाँ का वातावरण बड़ा ही दमघोटू हो गया है । उसके अन्दर के आदमियों को भवन के बाहर की कोई भी झलक नहीं मिल पा रही है । लेकिन उन्हें इस भवन की छत के पास कुछ खिड़कियाँ दिखाई दे रही हैं । उन खिड़कियों के पास पहुँचना असम्भव नहीं तो दुष्कर अवश्य हैं। कुछ हिम्मतवर लोग इस भवन के बाहर की झलक पाने की एक मात्र अभिलाषा के कारण अथक प्रयास में लगे रहते हैं। जिनमें कुछ पहुँचते भी हैं, और जो उन खिड़कियों में से किसी एक पर भी पहुंच जाता है; वह उस भवन के बाहर की झलक देखने लगता For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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