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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar त्रिगुणातीत अवस्था का बोध उसने ऐसा सोचने की अपनी हिम्मत जगाई तो एक बात मस्तिष्क में और आई कि इस बाजार में इतने सारे लोग काम पर लगे हुए हैं, इनमें से कुछ समझदार होंगे तो कुछ ना समझ भी होंगे। जब इन सबको काम मिल सकता है तो फिर मुझे क्यों नहीं मिल सकता है ? उसने इस स्थान को जहाँ पर वह खड़ा था, गौर से देखा और उस स्थान को धन्यवाद देकर वहाँ से काम की तलाश में निकल पड़ा । धन्यवाद उसने इसलिये दिया था क्योंकि जिन्दगी की शिक्षा का पहला सबक उसे इसी स्थान पर ही तो मिला था। थोड़ी दूर जाकर देखा कि एक नयी इमारत में काम हो रहा है । मजदुर सामान ढो रहे हैं। संगतराश पत्थर में खुदाई का काम कर रहे हैं । मिस्त्री लोग ईटों की चिनाई कर रहे हैं । उनके ऊपर एक पढ़ा लिखा सा आदमी उनको समयसमय पर निर्देश दे रहा है । इतना सब देखकर वह बिना कुछ सोचे समझे उसके पास जाकर बोला, "क्या आप मुझे अपने यहाँ काम पर रख सकते हैं ?' उस व्यक्ति ने इस लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा और मन में सोचा यह तो किसी अच्छे घर का लड़का दिखाई देता है। _ "घर से भागकर आये हो ।" वह ठेकेदार सरीखा व्यक्ति बोला। इसके उत्तर में लड़के ने कहा कि “नहीं साहब, मुझे तो घर से आदेश मिला है कि मैं कुछ भी कमाकर लाऊँ।" इसके बाद उसने सारी कहानी उस व्यक्ति को बता दी । उस सहृदय' इंसान ने कहा-"अब बारह बजने ही वाले हैं, थोड़ी देर में खाने की छुट्टी होगी, इसलिए एक बजे आ जाना, तुम भी काम पर लग जाना, आये दिन की मजदूरी के रूप में शाम को तुम्हें पाँच रुपये मिल जायेगें ।" जिस लड़के ने अभी तक घर से बाहर निकल कर नहीं देखा हो । उसके सिर पर पच्चीस किलो की परात सामान से भरकर लादी गई हो, ऐसे लड़के की आँखों के सामने अँधेरा आने में कितनी देर लगती है। लेकिन चूंकि लड़के में होनहार एवं अक्लमन्दी के संस्कार मौजूद थे। जैसे तैसे अपने आप पर काबू करके उसने शाम के पांच बजे तक का समय पूरा किया। चार घण्टों में ही चेहरा मुरझा गया । कपड़े गन्दे हो गए । बालों की तो चले क्या चांद भी पिलपिली हो गयी थी। सुबह से खाना भी नहीं खा पाया था। भूख की बजह से हाल और भी बुरा था। खैर जैसे तैसे वह अपनी मजदूरी के पैसे लेकर अपने पिता के पास पहुँचा और चुपचाप For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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