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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्याय त्रिगुणातीत अवस्था का बोध भगवान श्री कृष्ण ने गीता में मुख्य रूप से समझा-समझाकर जो बात कही है, वह यही बात कही है कि, तू अपना कर्म कर लेकिन फल की आकांक्षा मत कर । बड़ा अटपटा लगता है यह कि बिना फल की अपेक्षा किए हुए कोई कर्म इस दुनियाँ में होता होगा भला ? क्योंकि बुद्धि सीधा सा प्रश्न खड़ा कर देती है कि जब किसी फल के परिणाम की इच्छा ही हमें नहीं है, तो फिर हम कर्म किसलिए करें ? इसके विपरीत मानव मन को तो यह अच्छा लगता, “यदि कृष्ण यह कहते कि कोई भी कर्म मत कर और मनचाहा फल प्राप्त कर ।' कितनी सुविधाजनक बात होती, यदि ऐसा कृष्ण कह जाते। उन्होंने ऐसा कठिन वक्तव्य क्यों दिया ? ऐसी क्या विशेष बात है उपरोक्त एक लाइन के इस बत्ताव्य में, जो गीता के सार सृन मक्खन के रूप में सबसे ऊपर तैर रहा है । अगर वास्तव में आप इस छोटे में वक्तव्य की गहराई नापना चाहें तो आप पायेंगे भी बड़ी गहरी बात । इस छोटी सी बात मैं कृष्ण ने हमको कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है । कृष्ण कौन से कर्म की बात कर रहे हैं और कौन से फल की ? कर्म पर तो उन्होंने क्यों इतना जोर दिया ? जबकि फल पर तो उन्होंने स्वाभाविक जोर भी नहीं रहने दिया है ।। इसके पीछे कोई न कोई गहन कारण होना चाहिये, और मेरे देखते-देखते, है भी कारण गहन ही। ___ यदि कृष्ण कहते कि अमुक कर्म करो, तो अमुक फल की आपको प्राप्ति होगी, तो गलत हो जाता और इसके विपरीत कृष्ण यदि यह कहते, कि अमुक फल की प्राप्ति के लिए अमुक कर्म करो, तब भी गलत हो जाता। कृष्ण जैसा चैतन्य For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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