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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन से ही प्रेम और मन से ही भक्ति ३१ अपनी मालिन सहेली को जगाया और कहाकि-- "तेरे घर में रखे इन फूलों की बास मुझे सोने नहीं दे रही है, एक काम कर मेरी मछली वाली टोकरी जिसे तूने बाहर रख दिया है उसे यहां मेरे पास ला दे, तभी मुझे नींद आयेगी।" ___ उस मालिन को उसकी बुद्धि पर बड़ा आश्चर्य हुआ, लेकिन फिर भी अपनी सहेली की खातिर अपने मुंह पर कपड़ा रखकर उसने वह मछली वाली डलिया अपनी सहेली को सोंप दी। चन्द मिनटों बाद उसे और भी ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उसने अपनी सहेली को खर्राटे भरते हुये सुना । लेकिन उसके बाद बेचारी उस मालिन को रात भर मधली की बदबू के कारण नींद नहीं आई । इसलिये यह बात अच्छी तरह से हम समझ लें कि हमारा मन जिस प्रकार की भी परिस्थियों से अपना सामंजस्य बैठा लेता है चाहें बे अच्छी हों या बुरी हों बाद में उनके बिना हमें बेचेनी महसूस होती है। कुछ लोग केवल दुःखों से ही अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं, और सोचते हैं कि, दुःखों के हमारे जीवन से चले जाने के पश्चात हम सुख पूर्वक रह सकते हैं उन्हें इसमें तो कोई उलझन भी नहीं दिखाई देती है। लेकिन मेरे देखते बात कुछ संभलती भी नहीं दिखाई देती, यदि हम केवल दुःखों से ही बचना चाहते हैं । क्योंकि जिस प्रकार के सुख को हम अपने लिए बचाना चाह रहे हैं जैसे ही भविष्य में हमें हमारे जीवन में उस सुख का अभाव होगा, वैसे ही उस सुख को रिक्तता ही हमें दुःखों के सागर में ले डूबेगी क्योंकि दुःख तो हम उसे ही कहते हैं जिसके द्वारा हमारे मन की आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं होती है। यदि हमें दुःखों से वारतव में पीछा छुड़ाना है तो, मेरे विचार से हमें अपने मन से सुखों की कामना करने का भाव भी त्यागना ही होगा। और केवल तभी हम दुःखों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। हमारे मन या चित्त को सुख और दुःख दोनों ही चंचलायमान रखते हैं और जब तक हम स्वयं ही अस्थिर हैं या चंचल हैं तब तक हम अपनी साधना के दौरान एकाग्र होकर स्थिर कैसे हो सकेगें। महषि पंतजलि अपने योग दर्शन को For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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