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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साकार हमारा चिन्तन-निराकार हमारा मार्ग २२५ इसी संदर्भ में एक कथा मुझे याद आ रही है। एक व्यापारी दो ऊँटों पर सामान लादकर शहर की तरफ बेचने को ले जा रहा था । उन दोनों ऊँटों में से एक ऊँट तो रास्ते में आने वाले पेड़ों की पत्तियों को खाता हुआ चल रहा था। जबकि दूसरा ऊँट अपने मुंह को बिल्कुल बन्द करके चुपचाप चला जा रहा था । पहले वाले ऊँट ने जोकि खाता हुआ चल रहा था दूसरे ऊँट से कहा कि तुम भी मेरी तरह खाते हुये क्यों नहीं चल रहे हो ? इसके जबाब में दूसरे ऊँट ने कहा कि इतना भारी बोझ तो पीठ पर लदा है जिसकी वजह से जान तो निकली जा रही है और तुम्हें खाने की पड़ी है। तुम्ही खाओ मैं तो जब यह बोझ उतर जायेगा तब खाऊंगा । इसी प्रकार से तमाम रास्ता तय हो गया । बाजार जाकर व्यापारी ने उन दोनों ऊँटों पर से सामान उतार दिया और इन दोनों को एक बंटे से बांध कर अपने बाजार के काम में लग गया । _अब पहला वाला ऊँट जोकि रास्ते भर खाता हुआ आया था वह तो बैठ कर जुगाली करने लगा जब कि वह दूसरा ऊँट जो बिल्कुल भूखा था अब भी अपना मुंह बन्द करके पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था। कहने का मतलब यह है कि इस दुनिया में जीते हुये जाने कितने-कितने गृहस्थी, परिवार, समाज , देश, दुनियां के बोझ हमारे ऊपर लदे रहते हैं, और इसी लकदक में हमारा जीवन बीत जाता है । मृत्यु को सामने पाकर हम फिर चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं। इसलिये सब कुछ बरबाद करके यदि हमें यात्रा का होश जगा तो क्या खाक जगा ? कुछ लोगों का विचार यह रहता है कि अब तो जवानी है योग बुढ़ापे में साधेगे अथवा कुछ लोगों को तब होश जागता है, जब मृत्यु' साक्षात सामने खड़ी दिखाई देती है, तब तो फिर वही कहावत चरितार्थ होती है, “अब पछताये होत क्या, जब चिड़ियां चुग गई खेत ।" मौत के हमारी देहलीज पर कदम रखने के पश्चात् तो हमारे पास सिर्फ पछतावा ही रह जाता है । इसलिए आज यदि आप अपनी मस्ती के नशे में मस्त हैं तब भी आपको कोशिश करनी चाहिये कि यह नशा टूटे, हमारा चश्मा उतरे हम गाफिल होकर बेहोशी में पड़े हैं वह नींद हमारी टूटे । For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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