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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समप्रज्ञात के चार भेदों के बाद असमप्रज्ञात की झलक २१३ काम में लाते हैं मेरे सामने उसका रहस्य खुल गया है, मेरे देखते वह पुस्तक शुरूआत करने के लिए बड़े काम की है। यह ठीक है कि बाद में इसकी कोई खास जरूरत नहीं पड़ती लेकिन फिर भी उसका महत्व जिन्दगी भर बना रहता है। केवल इतनी सी बात में आपके सामने आध्यात्म के इस सोपान को लिखते समय रख रहा हूँ और डरते-डरते भी क्योंकि कुछ देर तक तो मैं या मेरे अनुभव इसमें साथ चलेंगे। जहां तक मैंने गिनती पढ़ी हैं। बाद में तो मैं भी आपको वही बताना चाहूँगा जो कि मैंने इस प्रकार की पुस्तकों का स्वाध्याय करके जाना है, क्योंकि जिस प्रकार एक डाक्टर सम्पूर्ण शरीर में विशेष प्रकार से दक्ष नहीं हो सकता या वह किसी अंग विशेष में ही विशेषज्ञ हो सकता है। शेष अंगों की जानकारी का तो उसे अपनी शिक्षा या स्वाध्याय के द्वारा ही पता चलता है जिस कारण से शरीर के अन्य अंग-प्रत्यंगों की जानकारी में कहीं अटकाव उसे नहीं आता ठीक उसी प्रकार इन अध्यायों में लिखे अपने अनुभवों के बाद मेरे मन में भी किसी प्रकार की भटकन, अटकाव या शंका आगे के सोपानों के बारे में नहीं है। अब जैसे मैंने स्वयं के स्थूल शरीर में ही सूक्ष्म शरीर को भी जाना है तब यह बात भी अपने आप ही मैं जान जाता हूँ कि आपके दिखाई देने वाले इस स्थूल शरीर के अन्दर भी बिना दिखाई देने वाला सूक्ष्म शरीर अवश्य ही होगा क्योंकि जिस क्रिया के फलतः मैं इस दुनियां में आया हूँ ठीक उसी प्रकार की, बिलकुल वैसी ही परिस्थितियों में ही तो इस दुनियां में आपका शरीर जन्मा है, फिर क्यों न हो ठीक मेरे सूक्ष्म शरीर जैसा आपका, यदि कुछ बदलाव हो सकता है तो वह मन के स्तर पर हो सकता है, चित्त के स्तर पर हो सकता है लेकिन उसके स्वरूप के स्तर पर नहीं हो सकता । जैसे अलग-अलग गायों का दूध गाढ़ा या पतला हो सकता है लेकिन यह नहीं हो सकता कि एक गाय का दूध तो दूध हो जबकि दूसरी गाय का दूध, दूध न होकर शहद हो जावे । इतना अनुभव हो जाने के पश्चात व्यक्ति की यह शंका भी स्वतः ही निर्मूल हो जाती है जो कि बड़ी से बड़ी शंका के रूप में हमारे मन को हमेशा घेरे रहती है कि अगला जन्म होगा For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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