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अध्याय १४
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समप्रज्ञात के चार भेदों के बाद असमप्रज्ञ त की झलक
यदि आपके हाथों में छोटे-छोटे बच्चों को गिनती सिखाने वाली या पहाड़ा सिखाने वाली वह छोटी सी पुस्तक दे दी जाये और कहा जाये कि इसमें इकाई से लेकर "दस शंख" तक की गिनतियों का उल्लेख है, क्या ? आपने अपने जीवन में इतनी गिनतियां पढ़ी हैं? या एक से लेकर दस शंख तक की गिनतियां अपने हाथ से लिखी हैं ? इसके उत्तर में आप सीधा सा उत्तर देंगे, 'अरब, खरब या शंख तक गिनती जानने के लिए स्वयं अपने हाथ से उतनी गिनती लिखना कतई जरूरी नहीं है । जब मैंने हजार तक गिनती लिख लीं, पढ़ लीं और जान लीं हैं तो फिर आगे की गिनती न होने की शंका ही मन में नहीं उठती, क्योकि जब हजार तक मौजूद हैं तो उससे आगे भी गिनती उसी तरह होंगी ही जिस तरह से यहाँ तक हमारे सामने विद्यमान हैं ।
मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि मैंने दस शंख तक की गिनती को अपने हाथ से नहीं लिखा है और न ही मैं कोई गणितज्ञ ही हूँ और इसके साथ ही कोई इस गिनती में अलग से कोई नई व्याख्या भी मैंने नहीं निकाली है। कुछ जाना है तो बस इतना ही जाना है कि पहाड़े की पुस्तक की सत्यता को ही जाना है । उस पुस्तक के द्वारा हम किस तरह से सवालो को हन कर सकत हैं ? इसके अतिरिक्त इस बात को मैं इस तरह से भी कह सकता हूँ कि बिना पढ़ लिखे लोग जो कि पहाड़े की पुस्तक को अपने लिए काम की नहीं समझते हैं और विद्यामाता का स्मरण करके परमात्मा का नाम लेकर अपन घर केवल पूजा के लिये
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