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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar कुण्डलिनी जागरण ही समाधि २०७ सूक्ष्म के अनुभव मैंने किये और अब भी चल रहे थे जिनमें कभी-कभी तो बड़े-बड़े ग्रन्थ मेरे सामने आते वे बड़े पुराने कागजों के थे लेकिन मैं उनका एक भी अक्षर कोशिश करने के बावजूद भी नहीं समझ सका । अन्य किसी दिन के अनुभव में मैं किसी मन्दिर में दर्शन करने पहुँच जाता और कभी बड़ी सुन्दर प्रतिमा मेरे समक्ष होती। इस प्रकार अनन्य अनुभवों को थोड़े-थोड़े से दिनों के अन्तराल पर कर रहा था । मेरा मन इन अनुभवों को पचा नहीं पाता जिसके कारण से बातचीत में किसी न किसी तरह से शब्दों के द्वारा दूसरों के सामने प्रकट हो ही जाते थे। यह मेरे मन को कमजोरी थी शायद इसके ही कारण से बाद में मेरा यह कार्य होना बन्द हो गया, बहुत दिनों तक परेशान रहा कि क्या बात हो गयी ? मैंने तो कभी कोई दुरुपयोग भी नहीं किया लेकिन एक दिन फिर वही सब कार्यक्रम हुआ, उस दिन तो मैं इतना ऊँचा लेटे-लेटे चला गया कि पृथ्वी ही गोले के समान मुझे मेरे नीचे दिखाई देने लगी। फिर वही मन की बात कि कहाँ पृथ्वी और कहाँ मेरा शरीर? बस अपने शरीर का ख्याल आते ही प्राण सुषमणा से इडा पिंघला में उतर आए और मैं सामान्य हो गया । हाँ एक बात और जैसे ही मेरी आँखें खुलतीं और अपने पड़े हये शरीर पर ध्यान जाता तो दो बातें हमेशा एक सी अवस्था में पाता था । पहली यह कि मन में काम वासना न होने पर भी मैं अपनी कामइन्द्रिय को सूक्ष्म से स्थूल में प्रवेश करते ही उत्तेजित अवस्था में पाता था तथा दूसरे मेरा स्थूल शरीर हर बार मुझे जाम हुआ मिलता था। उसके बाद भी कुछ महिनों तक कभी लगातार कभी रुक-रुककर, कभी हल्के, कभी भारी अनुभव होते रहे, लेकिन बीच-बीच में कुछ बाधायें आ जाती थीं, जब भी कोई थोड़ी सी भी नई बात मेरे समक्ष आती किसी न किसी प्रकार से वह मेरे ही द्वारा मुंह से बाहर निकल जाती। जिसकी वजह से ही शायद मेरा मन उसके अहम् से भर जाता, क्योंकि जो नई बात जिस किसी को भी बताता था वह उससे प्रभावित हुये बगैर नहीं रह सकता था, जिसकी पलट मेरे ही मन पर होती थी। मन पर जब तक वह प्रभाव रहता था, कम से कम तब तक तो वह कार्य For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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