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अवस्था में था ।
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योग और साधना
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उस समय जो भी बातें मैंने अपने होश में अनुभव की थीं। मैं केवल उन्हीं को लिखने का उत्सुक हूँ । हालांकि इन बातों को सिद्ध करने के लिए मेरे पास कोई सबूत नहीं है, लेकिन मुझे इसकी चिन्ता भी नहीं है क्योंकि जो भी व्यक्ति इस क्रिया को अपनाकर साधना करेगा वह तो जान ही लेगा और जहाँ तक वैज्ञानिकों का सवाल है आज की परिस्थितियों में इसको उनके समक्ष सिद्ध करना असम्भव है। क्योंकि अपने मानसिक स्तर पर हुये सुक्ष्म शरीर के अनुभवों को उनके समक्ष पेश करना सम्भव कम से कम आज की वैज्ञानिक परिधि में नहीं है ।
तीसरे दिन भी उसी प्रकार से कार्यक्रम हुआ । अव भय तो था ही नहीं इसलिये मैंने आज अपने मन में इच्छित स्थान पर जाने की धारणा उसी सूक्ष्म शरीर के द्वारा की लेकिन असफल रहा और अपने इच्छित स्थान पर पहुँचने की वजाय किसी भयानक सी जगह पहुँच गया । इसी प्रकार नित्य ही नये-नये अनुभवों के साथ मेरा कार्यक्रम हो रहा था एक दिन अपनी सामान्य अवस्था में मैंने सोचा कि मैं गृहस्थी हूँ । आज नहीं तो कल मेरा ब्रह्मचर्य अवश्य ही टूट जाएगा। क्या उसके बाद यह कार्यक्रम बन्द हो जायेगा ? उन दिनों तो नहीं लेकिन काफी दिनों बाद यह स्पष्ट हो ही गया कि ब्रह्मचर्य द्वारा वीर्य का क्षरण रोकना बहुत ही जरूरी है अन्यथा यह कार्य शरीर में वीर्य की कमी के कारण यह रास्ता विधिवत होकर अवरुद्ध हो जाता हैं ।
रहा था कि मेरी कुण्डलिनी का जागरण नहीं कर सकता था । अब तो जितनी देर मुझे चित्त में बड़ी आनन्द - इस संसार का प्रत्येक आनन्द
मैं अपने मन में फूला नहीं समा इतनी आसानी से होगा. मैं तो कल्पना भी देर मैं उस अवस्था या सूक्ष्म शरीर में रहता उतनी दायी स्थिति रहती थी, जिसके आनन्द के पीछे मुझे भी फीका लगने लगा था मेरी सदा यही इच्छा रहती तक मैं उस स्थिति में रह सकूं, लेकिन मैंने हर बार स्थूल शरीर के प्रति मेरा ध्यान जाता, सूक्ष्म स्वरूप में वापिस आ जाता और हर बार इस अवस्था के मिलता, जो दो चार मिनट में ही ठीक हो जाता था । इसी प्रकार अनगिनत बार
थी कि ज्यादा से ज्यादा देर पाया कि जैसे ही मन में अपने मिट जाता और तुरन्त ही स्थूल पश्चात मुझे मेरा शरीर जाम
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