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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १६६ योग और साधना कुण्डलिनी जागरण के अनुभव के दौरान मैं अपनी साधना में किन-किम परेशानियों से या किस प्रकार के भय से ग्रस्त था और उनको किस प्रकार निरा-' करण हुआ ? यहां उनका संक्षिप्त सा ब्यौरा में अन्य साधकों के हितार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह जानते हुए भी कि इन रहस्य की बातों को दूसरों के सामने नहीं खोलना चाहिये । क्योंकि इस प्रकार के अनुभवों को अपने द्वारा प्रगट करने से हमारे मन के ऊपर एक अहम् का पर्दा चढ़ जाता है जिसके कारण नये-नये साधक को उसके ठीक से चलते हुये कार्य में भी, अपना मन बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। इसके लिए ओमानन्द जी तीर्थ ने साधकों को चेतावनी देते हुये लिखा है जिसको कोई सन्त या असन्त, अश्रु त या बहुश्रुत, सुवृत या दुवृत नहीं जानता । वह ब्रह्म निष्ठ योगी है, गूढ़ धर्म का पालन करता हुआ विद्वान योगी, दूसरों से अज्ञात चरित रहे अन्वे के समान, जड़ के समान और मूक के समान पृथ्वी पर विचरण करे। “यं न सन्तं न चासन्तम् न श्रुतं न बहुश्रुतम् । न सुवृतं न दुवृत वेव कश्चित् स ब्राह्मणः ।। गूढ़ धर्माश्रितो विद्वान ज्ञात चरितं चरेत् । अन्ध वच्च जड़ बच्चापि मूक बच्च मही चरेत् ।। यदि सभी अनुभवी इस संसार से पीठ फेर लेंगे तो इस दुनिया में आगे आने वाली सन्तति को कौन किस प्रकार से बतायेगा लेकिन ओमानन्द जी की बात असत्य नहीं हैं इसलिए मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि इस पृथ्वी के अनन्य साधकों के हितार्थ इस बात को खोलने में वह मेरी सहायता करें और यदि इसके अतिरिक्त मुझे इसके द्वारा किसी प्रकार के मेरे पूर्व के संस्कारों को भुगतना लिखा हो तो वह भी जिस प्रकार से भी भुगतें उसके लिए भी परमात्मा मुझे हौंसला प्रदान करें। मैं उन दिनों जब भी ध्यान पर बैठता था, शुरू में पहले लम्बे और गहरे प्राणायाम खींचा करता था जो गिनती में तो दो तीन ही होते थे लेकिन उनमें मुझे आधा घण्टा तक लग जाया करता था। प्राणायाम करने के पश्चात् भी मैं अपने उसी आसन पर बिना हिले डुले वहीं का वहीं ज्ञान मुद्रा में बैठा रहता का For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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