SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १७३ लिए समपर्ण भाव से परमात्मा की आकाक्षा के लिए परमात्मा के कार्य को ही पूर्ण करने के लिए ही तो जा रहे थे जहां हमारे मन में इस प्रकार की भक्ति की गंगा बह रही हो वहां आप क्या सोचते हैं, उस व्यक्ति की इच्छा शक्ति यूं ही अपने प्राण गवां बैठेगी । इस बात को और खुलासा करने के लिए मैं इसे इस तरह से भी आपके समक्ष रख रहा हूँ। जब तक हमें उस परमात्मा के प्रति या अपने प्रति जरा सा भी होश है, यह होश ही हमें अपनी मृत्यु के विपरीत हमारे प्राणों को स्थिर रखने की कोशिश करता है। यही कारण है कि यदि किसी समय हमारा मस्तिष्क असफल हो जाए तो हमारी चेतना जो कि होश के द्वारा जाग्रत है हमारे मस्तिष्क के फेल हो जाने के पश्चात् भी जीवित रहने के दूसरे रास्ते को आजमाने से नहीं चूकती। लेकिन ऐसा केवल तब ही हो सकता है जब पूर्व में उसके विचारों में पूर्ण रूपेण बिना किसी शंका के उस अज्ञात के प्रति समर्पण भाव हो, नहीं तो विना समर्पण भाव के आप अपनी बुद्धि के स्तर पर ही रह जायेंगे। चेतना के स्तर की जागति आपमें नहीं हो सकेगी और जब आप अभी स्वयं ही अधूरे हैं तो आप पूर्णता को प्राप्त किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो ही जावेंगे। ___ इसमें किसी प्रकार की शंका नहीं है क्योंकि मस्तिष्क की अनुपस्थिति में कौन आपके प्राणों को सुषमणा में जाने के लिए कहे या वह घटना कैसे घटे और जब आपने अपने प्राणों को भय के आघात के द्वारा भवन के एक कमरे में से तो निकलवा दिया और दूसरा कोई अन्य कमरा आपने खोल नहीं रखा है तो बेचारे प्राण घर से बाहर ही तो निकल जावेंगे और प्राण एक बार यदि इन तीनों नाड़ियों के सम्पर्क से बाहर निकल जायें तो ध्यान रखना फिर इनका वापिस लौटमा सम्भव नहीं होता। क्योंकि फिर वह परम निर्वात टूट ही तो जाता है। __भक्ति मार्ग से साधना प्रारम्भ करते समय सर्व प्रथम हमें समर्पण का महत्व सीखना होता है अन्यथा भक्ति तो क्या उसकी परछायीं में भी हम नहीं पहुँच पायेंगे। किसी ने बहुत ही सोच समझकर और अच्छी तरह जानकर ही लिखा है। "गर कुछ मर्तवा चाहे, मिटा दे अपनी हस्ती को। कि दाना चाक में मिलकर गले गुलजार होता है ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy