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इडा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव
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लिए समपर्ण भाव से परमात्मा की आकाक्षा के लिए परमात्मा के कार्य को ही पूर्ण करने के लिए ही तो जा रहे थे जहां हमारे मन में इस प्रकार की भक्ति की गंगा बह रही हो वहां आप क्या सोचते हैं, उस व्यक्ति की इच्छा शक्ति यूं ही अपने प्राण गवां बैठेगी । इस बात को और खुलासा करने के लिए मैं इसे इस तरह से भी आपके समक्ष रख रहा हूँ।
जब तक हमें उस परमात्मा के प्रति या अपने प्रति जरा सा भी होश है, यह होश ही हमें अपनी मृत्यु के विपरीत हमारे प्राणों को स्थिर रखने की कोशिश करता है। यही कारण है कि यदि किसी समय हमारा मस्तिष्क असफल हो जाए तो हमारी चेतना जो कि होश के द्वारा जाग्रत है हमारे मस्तिष्क के फेल हो जाने के पश्चात् भी जीवित रहने के दूसरे रास्ते को आजमाने से नहीं चूकती। लेकिन ऐसा केवल तब ही हो सकता है जब पूर्व में उसके विचारों में पूर्ण रूपेण बिना किसी शंका के उस अज्ञात के प्रति समर्पण भाव हो, नहीं तो विना समर्पण भाव के आप अपनी बुद्धि के स्तर पर ही रह जायेंगे। चेतना के स्तर की जागति आपमें नहीं हो सकेगी और जब आप अभी स्वयं ही अधूरे हैं तो आप पूर्णता को प्राप्त किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो ही जावेंगे।
___ इसमें किसी प्रकार की शंका नहीं है क्योंकि मस्तिष्क की अनुपस्थिति में कौन आपके प्राणों को सुषमणा में जाने के लिए कहे या वह घटना कैसे घटे और जब आपने अपने प्राणों को भय के आघात के द्वारा भवन के एक कमरे में से तो निकलवा दिया और दूसरा कोई अन्य कमरा आपने खोल नहीं रखा है तो बेचारे प्राण घर से बाहर ही तो निकल जावेंगे और प्राण एक बार यदि इन तीनों नाड़ियों के सम्पर्क से बाहर निकल जायें तो ध्यान रखना फिर इनका वापिस लौटमा सम्भव नहीं होता। क्योंकि फिर वह परम निर्वात टूट ही तो जाता है।
__भक्ति मार्ग से साधना प्रारम्भ करते समय सर्व प्रथम हमें समर्पण का महत्व सीखना होता है अन्यथा भक्ति तो क्या उसकी परछायीं में भी हम नहीं पहुँच पायेंगे। किसी ने बहुत ही सोच समझकर और अच्छी तरह जानकर ही लिखा है।
"गर कुछ मर्तवा चाहे, मिटा दे अपनी हस्ती को। कि दाना चाक में मिलकर गले गुलजार होता है ।।
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