SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १४२ योग और साधना संस्कार और तीसरी है हमारी इच्छा शक्ति । इस प्रकार हमारे अन्दर प्राणों के अलावा ये तीन चीज हमेशा विद्यमान रहती हैं । इनके बिना हम बिल्कुल अधूरे ही रहेंगे। मन के द्वारा हमारे स्वभाव का निर्माण होता है जो कि इनमें सबसे हल्की अवस्था है लेकिन हमारे साथ इसका चौबीसों घण्टे का सम्पर्क रहता है । यही मन इन्द्रियों के अधीन होकर सांसारिक कार्यों में लिप्त रखता है अथवा इसके विपरीत यह इन्द्रियों को अपने अधीन करके, संसार से विरक्ति की भावना की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करने में पहली सीढ़ी के रूप में हमारी मदद करता है। हमको इसकी प्राप्ति हमारे माता-पिता से विरासत में मिलती है । इसी के द्वारा हमारी वृत्तियाँ हमारी आदतें प्रभावित होती हैं। माँ, पित, पूत, पिता, पति घोड़ा, और नहीं तो थोड़ा-थोड़ा। संस्कारों के द्वारा हमारे भाग्य का निर्माण होता है। इसी के द्वारा ही हमें हमारे कर्मों का फल या प्रतिफल मिलता है मान, सम्मान, यश, कीर्ति, अपकीर्ति, प्रतिष्ठा, लाभ, हानि, जीवन, मरण, बीमारी, सुख-दुःख, वैभव, दरिद्रता और न जाने संसार की कितनी-कितनी बातें संस्कारों के द्वारा ही हमारे भाग्य में जुड़ती हैं । यह हमें हमारे जन्म के समय इस प्रकृति में उपस्थिति ग्रहों या नक्षत्रों के प्रभाव. से मिलती हैं । इच्छा शक्ति बह प्रेरणा है जिसके द्वारा हमें संकल्प शक्ति की. प्राप्ति होती है । संकल्प शक्ति के द्वारा ही हम विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मार्ग पर अविचल होकर बढ़ते ही जाते हैं । इस संकल्प शक्ति की शक्ति से ही हम अपनी आत्मिक-शक्ति जाग्रत करते हैं और उसी से हम अपनी समस्त इच्छाओं अभिलाषाओं एवं आकांक्षाओं के विपरीत योग में प्रविष्ट कर पाते हैं । यह इच्छा शक्ति ही बह शक्ति है जिसके जन्म लेने की प्रवृत्ति बलवती होने के कारण ही हम इस दुनियाँ में जन्म लेते हैं। यही वह शक्ति है जिसे हम बहुत गहरे में मन और संस्कारों के बाद भी अपनी प्रज्ञा, अस्मिता आदि के नाम से जानते हैं अथवा यही है हमारा बीज स्वरूप इसकी प्राप्ति हमें कहीं से नहीं होती यही तो हम हैं । इसका प्रथम उद्देश्य है प्रकृति में जन्म लेना और अन्तिम उद्देश्य है मुक्ति की प्राप्ति । इस प्रकार से यह प्राण रूपी आकाश तत्व हमारी इच्छा शक्ति संस्कारों और मन For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy