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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधन से सिद्धियों की प्राप्ति १२७ जाती है बस वह उसी इस मिथ्या धारणा को । इसलिए यह होना है इस सत्य तो यह है इनको भविष्य की जानकारी वर्तमान में हो के अनुरूप अपना कार्य पहले से शुरू कर देते हैं। इसमें से बिल्कुल निकाल देना चाहिये कि उसने अपनी बात को बड़ी सिद्ध कराने के लिये उन परिस्थितियों को अपने अनुकूल मोड़ लिया था जबकि वह परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं बहुत पहले मुड़ गया था । महात्मा गाँधी मस्तिष्क तो से यह कभी नहीं चाहते थे कि हिन्दुस्तान के टुकड़े कर दिये कर जायें एक बार तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि हिदुस्तान के टुकड़े करने से पहले मेरे टुकड़े करने होंगे । लेकिन वह किस प्रकार इस सबको रोकेंगे उन्हें खुद पता नहीं था ? उस समय अपने मस्तिष्क के पक्ष में उस आवाज की बड़ी बेचैनी से प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन समयकी धारा में कुछ और ही होना निश्चित था । आवाज कहाँ से आती अथवा मार्ग दर्शन क्यों कर होता और यही कारण था कि गाँधी के देखते देखते हिदुस्तान का विभाजन हो गया और वे देखते रहे एक निरीह बालक की तरह अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि कोई भी सिद्ध हो, जो कुछ भी प्रकृति में उसके खिलाफ वह भी नहीं जा सकता है । अगर पिछला इतिहास उठा कर देखें तो पता चलेगा कि कृष्ण न तो स्वयं महाभारत में हुये जन विनाश को रोक सके और न ही अपने तथाकथित छप्पन करोड़ यादवों में फैली अव्यवस्था को ही रोक सके । राम अपना प्रभुत्व आज सारे संसार पर छोड़ रहे है लेकिन अपने -समय में अपने प्रजा के धोबी को नहीं समझा सके। क्या गाँधी, राम, कृष्ण ये सब तपस्वी कहलाने लायक भी नहीं थे। क्या गांधी अपने मन की चंचलताओं पर विजय प्राप्त किये बिना ही आमरण सत्याग्रह का व्रत लेते थे और इतने लम्बे-लम्बे उपवास क्या एक भोजन भट्ट ले सकता था । तपस्वी ही तो हो गये थे । कृष्ण जिनको हम योगावतार ही कहते हैं। क्या पूर्व जन्म की तपस्या के बिना अपने बालपन से लेकर आजीवन अपने चमत्कारों से चमत्कारित कर सकते थे। तो कहने का मतलब सिर्फ इतना है— प्रार्थना के रास्ते से हम अपने मन की लहरों को पढ़ पाने में समर्थ होते हैं। क्योंकि तपश्चर्या के द्वारा हम विजातीय तत्वों से अपना बच्चाब करना सीख जाते हैं या दूसरे शब्दों में तपश्चर्या के द्वारा हम अपनी उगी हुई फसल में से खरपतवार को उखाड़ कर फेंकने में समर्थ हो जाते हैं। फिर हमारा शुद्धतम् स्वरूप बचता है जिसके अन्दर असीम सम्भावनों की आहट सुनाई देती है अर्न्तमन की शक्तियों की पग ध्वनि सुनाई देती है। जिसके कारण हमारी क्षमताओं में असीमित बुद्धि हो जाती है राम चौदह वर्ष तक वन में रहकर For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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