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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar साधन से सिद्धियों की प्राप्ति तव में भरतपुर ही था लेकिन भरतपुर से डीग वस द्वारा केवल एक घंटे का रास्ता होते हुये भी मुझे उनकी मृत्यु की सूचना समय पर नहीं मिल पाई इसलिये उनका दाह संस्कार मेरे द्वारा नहीं हो सका था। पगड़ी भी पिताजी ने बंधवा ली थी। मेरे मस्तिष्क में किसी तरह से भी इस दस साल पुरानी घटना के अवशेष इस समय नहीं थे, लेकिन न जाने क्यों ये तमाम बातें इस रात के विचित्र बोझिल से वातावरण में एक चलचित्र की भाति मेरे चित में धूम गई और ऐसा लगने लगा कि हो न हो यह सारा का सारा प्रोग्राम उनके इशारों पर ही चल रहा है। बाद में मैंने अपने मन में यह निश्चित् किया कि यह उनके इशारों पर है या नहीं इससे मुझे कोई मतलब नहीं है लेकिन मैं अपने कार्यक्रम की समाप्ति पर खुद के खाना ग्रहण करने से पूर्व गंगा जी के नाम का परोसा धारा को अपित कर देने के पश्चात् दूसरा परोसा ताऊजी के नाम पर भी धारा को समर्पित करूंगा तव ही मैं स्वयं खाना खाऊँगा । इस विचार के मन में निश्चित् होते ही मैंने कमरे में छाई हुई बोझिलता को सामान्य होते हुये महसूस किया। अब मैं भी अपने आपको हल्का फुल्का महसूस कर रहा था लेकिन मन में एक शंका फिर भी रह गई थी कि मुझे इस बात का प्रत्यक्ष कैसे पता पड़ेगा । कि जिन ताऊजी को मैंने मन से परोसा अपर्ण करने की सोच ली है वे उसे ग्रहण करेंगे या नहीं। फिर भी मन में यह विश्वास भी जम सा गया था कि अवश्य कोई न कोई कारण ऐसा होगा, जिसकी वजह से मेरे विश्वास को ठेस तो कम से कम नहीं ही पहुँचचेगी। इतने सोच विचार के बाद ध्यान पर बैठे रहने का औचित्य कुछ बचा नहीं था इसलिये तीन बजे के कुछ पहले ही मैं फिर लेट गया। तीसरे दिन प्रातः जब आंखें खुली, सूर्योदय हुए बहुत समय व्यतीत हो चुका था नित्य कर्म के लिये उठा तो शारीरिक कमजोरी के कारण मुझे सहारे की भी आवश्यकता हुई। अब तो चलने-फिरने में ही नहीं, बल्कि बैठे-बैठे भी आंखों के सामने अंधेरा आ जाता था लेकिन ऐसी कोई स्थिति नहीं आयी, जिस पर मेरे मस्तिष्क पर काबू नहीं रहा हो । कनपटी अन्दर को दबी जा रही थी, सबसे ज्यादा बेचैन करने वाली जो बात मुझे अभी तक याद है वह यह थी कि सिर के ऊपर का हिस्सा यानि मोहों के ऊपर की खोपड़ी में बड़ी तीक्ष्ण जलन महसूस हो रही थी। जैसे किसी ने तेज धार वाली तलवार से उतना भाग ऊपर ऊपर से तरबूज की तरह काट For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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