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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधन से सिद्धियों की प्राप्ति १०६ करने लगा तो मैं वहीं उसी बिस्तर पर अपने सिद्धासन को खोलकर शवासन की स्थिति में लेट गया और अपनी आती जाती साँस पर लेटे-लेटे ही ध्यान करने लगा, कितनी देर तक उस समय मैं अपनी साँस पर अपना ध्यान केन्द्रित रख सका, मुझे यह ख्याल ही नहीं रहा, मुझे तो पता ही जब चला, जब दो घण्टे की गहरी ींद के बाद मेरी आँखें खुलीं। मैंने देखा, अगरबत्तियां जलकर समाप्त हो चुकी थीं । इसलिए मैंने नयी अगरबत्तियाँ जला दी, दीपक में थोड़ा घी और बढ़ा दिया, तब तक बाजार खुल गया था। बबुआ वाजार से ताँबे का बना हुआ हवन कुण्ड ले आया, ११ बजे के करीब मैंने तीन गिलास छाछ के पीये । फिर आग डालकर हवन कुण्ड को बबुआ ने चेता दिया, उसकी अग्नि में धूप डालते ही कमरा कि बन्द था, इसीलिए तमाम कमरे में धुआँ ही धुआँ भर गया। शुरू-शुरू में कमरे में व्याप्त धुयें के कारण मेरी आँखों में आंसू भी आ गये थे, लेकिन बहुत जल्दी ही मेरी आँखें उस धुयें की अभ्यस्त हो गयी लेकिन बबुआ का कमरे में ठहरना अब मुश्किल हो गया था इसलिए वह कमरे के बाहर बाजार की तरफ जहाँ बरामदा था, उसमें चला गया । मैं चूकि फर्श पर ही था इसलिए मेरे ऊपर धुएँ का प्रभाव कम हो रहा था लेकिन फिर भी एक विचार मेरे मस्तिष्क में आया कि धुआँ से तो इस कमरे में आक्सीजन की कमी हो जाएगी। इसके प्रति उत्तर के रूप में मेरे मस्तिष्क में से ही उत्तर मुझे मिला कि जब तक उस कमरे में दीपक जल रहा है तब तक आक्सीजन की कमी किस प्रकार से मानी जा सकती है। इसी सन्दर्भ में एक बात और यह है कि चाय तो मैं पहले से ही नहीं पीता था तथा सिगरेट की आदत को मैं पिछले छः महीने से कतई त्याग चुका था । इसलिये सिगरेट की तलब का कोई मुझे सवाल ही नहीं था। शराब मेरी आदत के रूप में नहीं थी, इस प्रकार किसी भी प्रकार के नशीला पदार्थ लेने को मैं उस समय मजबूर नहीं था । इन पाँच छः घण्टों के दौरान ही मुझे पता चल गया था कि जिस तरह से मैं हौसला पूर्वक वहाँ प्राणायाम किया करता था, यहाँ ठीक इसी तरीके से नहीं चल पायेगा । लेकिन चूकि मैंने अपनी मानसिकता को प्रत्येक आने वाली परिस्थिति के लिये तैयार करके रखा था इसलिये जब यह समस्या मेरे समक्ष आयी कि अब प्राणायाम तो होता नहीं है फिर मैं अब क्या साधन अपनाऊँ तो इसकी पूर्ति में मैंने सोचकर यह स्थिर किया कि अगर प्राणायाम नहीं चलता है तो न चले सांस तो चलेगी, उस साँस के साथ मैं राम का नाम साथ रखूगा तथा इसको मैं अपने मान For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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