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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ योग और साधना लिये अपनी साधना के दौरान हमारे कमरों का गन्दा या काला करेंगे तो क्या हुआ। किसी न किसी रूप में यहाँ के समस्त वातावरण को स्वच्छ एवं पवित्र भी तो करेंगे, इसीलिये आप अपना कार्यक्रम निश्चिन्त होकर यहाँ करें। मैंने यहां इस सन्दर्भ में ये तमाम बातें इसीलिए लिखी हैं क्योंकि यह मार्ग साधक के लिए शुरू-शुरू में अज्ञात मार्ग की तरह से होता है तथा प्रत्येक साधक को अपनी साधना को व्यवस्थित करने से पहले अनगिनत शंकाओं तथा समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसलिए धर्य एवं अपनी बुद्धि कौशल के द्वारा इन्हें हल कर लेना चाहिए अन्यथा शुरू से ही हमारे सामने ये बाधायें दीवाल सदृश्य विराम लगाकर खड़ी होकर हमारी साधना में विघ्न खड़े कर देती है। उस दिन रात्रि को मैंने अपने खाने में सिर्फ दूध ही लिया, बबुआ को अगले तीन दिनों में साभावित होने वाली बातों को यथासम्भव मैंने समझा दिया । इसके अतिरिक्त जो कुछ बाजार से सामग्री खरीदनी थी वह खरीद ली। इस प्रकार वह दिन बीत गया। दूसरे दिन यानि ६ मई, शनिवार को सुबह उठकर गंगा स्नान किया, तत्पश्चात् अपने कमरे में आकर जहाँ मेरा बिस्तर जमीन पर लगा था उसी पर बाकर बैठ गया। दीपक अगरबत्तियाँ जलायीं फिर जैसा कि आपने घर पर मैं सिद्धासन पर बैठकर श्वांस को अन्दर खींचकर (जिसे अभ्यान्तर कुभक के नाम से से भी कहा जाता है ।) प्राणायाम किया करता था वैसे ही वहाँ करने लगा। घर पर मैं दो या तीन प्राणायाम ही कर पाता था या समयानुकूल वहाँ मेरी इतनी ही क्षमता थी। उन दो या तीन प्राणायामों में ही मुझे आधा घण्टा लग जाता था क्योंकि प्रत्येक प्राणायाम के कुभंक का मेरा समय तीन मिनट के करीब रहता था । अपने रोजाना के बराबर कार्यक्रम करने के पश्चात् मन ने अपनी आदत के मुताबिक इस आसन से उठना चाहा लेकिन अब यहाँ आसन से उठकर दुकान तो जाना नहीं था। इसलिए अब तो अपनी अधिकतम सामर्थ्य के अनुसार लगे ही रहना था, चाहे मेरे द्वारा किये जा रहे कुभंक का समय अब आधी मिनिट ही क्यों न रह जाये । आगे चलकर ऐसा हुआ भी, डेढ़ घण्टे बाद तो मेरा तमाम हौसला ही जबाव दे गया और जब मैं दिल मैं अपने आपको बिल्कुल ही सामर्थ्य हीन अनुभव For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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