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श्री
व्यवहार
सूत्रम्
नवम
उद्देशकः
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आईयव्वे, अससणिद्धे मत्ते आगच्छइ आईयव्वे । ससरक्खे मत्ते आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे मत्ते आगच्छइ आईयव्वे । जावइए जावइए मोए आगच्छइ तावइए तावइए सव्वे आईयव्वे, तं जहा- अप्पे वा, बहुए वा। एवं खलु एसा खुड्डिया मोयपडिमा अहासुतं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ ॥ ४१ ॥
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हल्लियं णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पड़ पढमनिदाह कालसमयंसि वा, १४७० (B) * चरमनिदाहकालसमयंसि वा, बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा वसि वा
वणदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयदुग्गंसि वा, भोच्चा आरुभइ, सोलसमेणं पारेइ, अभोच्चा आरुभइ, अट्ठारसमेणं पारेइ । जाए जाए मोए आगच्छइ, ताए ताए आईयव्वे । दिया आगच्छइ आईयव्वे, रत्तिं आगच्छइ नो आईयव्वे, जाव एवं खलु एसा महल्लिया मोयपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ ॥ ४२ ॥
" दो पडिमातो " इत्यादि सूत्रद्वयम् । अस्य सम्बन्धमाहपडिमाहिगारपगते, हवंति मोयपडिमा इमा दोन्नि ।
ता पुण गणम्मि वुत्ता, इमा उ बाहिं पुरादीणं ॥ ३७६८ ॥
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सूत्र ४१-४२ गाथा ३७६८-३७६९ मोकप्रतिमा
स्वरूपम्
१४७० (B)