SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् व्याख्यातः षष्ठ उद्देशकः सम्प्रति सप्तम आरभ्यते तत्र चेदमादिसूत्रम्श्री सूत्रम्- जे निग्गंथा य निग्गंधीओ य संभोइया सिया, नो कप्पइ निग्गंथीणं व्यवहार निग्गंथे अणापुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं भिन्नायारं जाव सप्तम संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स अणालोयावेत्ता जाव अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवजावेत्ता उद्देशकः INS पुच्छित्तए वा, वाएत्तए वा, उवट्ठावेत्तए वा, संभुंजित्तए वा, संवसित्तए वा, तीसे , ११६९ (B) इत्तरियं दिसं वा, अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १॥ 'जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया' इत्यादि । अस्य सूत्रस्य सम्बन्धमाहनिग्गंथीणहिगारे, ओसन्नत्ते य समणुवत्तंते । सत्तमए आरंभो, नवरं पुण दो वि निग्गंथी ॥ २८१४॥ निर्ग्रन्थीनामधिकारे अवसन्नत्वे षष्ठोद्देशकचरमसूत्रद्वयादनुवर्तमाने सप्तमे उद्देशके सूत्रद्वयस्यारम्भो भवति। तत्र यथा षष्ठोद्देशके चरमसूत्रद्वये एकस्मिन् सूत्रे निर्ग्रन्थी द्वितीये सूत्रे निर्ग्रन्थ एवमिहापि न यत आह-नवरं सूत्रद्वयेऽपि द्वे अपि निर्ग्रन्थ्यौ ॥ २८१४॥ एवमनेन सम्बन्धेनायातस्यास्य व्याख्या गाथा ܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ११६९ (B) For Private And Personal Use Only
SR No.020937
Book TitleVyavahar Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy