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व्यवहारसूत्रम् षष्ठ उद्देशकः ११२७ (B)
शिष्यः, ऋद्धिवृद्धो राजादिप्रव्रजित इति एषामपि दशाप्यतिशया यथायोगं विधेयाः ॥ २६८७ ॥
सूत्रम्- से गामंसि वा नगरंसि वा जाव रायहाणिंसि वा (सन्निवेसंसि वा) एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ बहूणं अगडसुयाणं एगयओ |* वत्थए ।
अत्थि याइं केइ आयारपकप्पधरे, नत्थि णं केइ छए वा, परिहारे वा, नत्थि यांई णं केइ आयारपकप्पधरे से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ ४ ॥ 'से गामंसि वा नगरंसि वा' इत्यादि, अत्र सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाहकप्पति गणिणो वासो, बहिया एगस्स अतिपसंगेण । मा अगडसुया वीसुं, वसेज अह सुत्तसंबंधो ॥ २६८८॥
सूत्र ३
गाथा २६८४-२६८८ गणावच्छेदकस्य अतिश
यद्वयम्
११२७ (B)
१. जाव सन्निवेसंसि वा - K॥ २-३ याई ण्हं केइ - श्युब्रींग । याइत्थं केइ - गुरुप्राण पाठः ॥ या इण्हं केइ K॥
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