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श्री
व्यवहारसूत्रम् चतुर्थ उद्देशकः
सूत्रम्- नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंतगिम्हासु चरए ॥१॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चरए ॥२॥ नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चरए ॥३॥ कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स हेमंतगिम्हासु चरए ॥४॥ नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स वासावासं वत्थए ॥५॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए। ॥६॥ नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥ ७ ॥ कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए ॥ ८॥
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अथास्य सूत्राष्टकस्य कः सम्बन्ध ? इति सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाहएयद्दोसविमुक्को, होइ गणी भावतो पलिच्छन्नो । दव्वपलिच्छागस्सा, परिमाणट्ठा इमं सुत्तं ॥१७११॥
गाथा १७०५-१७१०
व्यवहारकरणविधिः
७९३ (B)
१. चरिए-श्युब्रींग । चरित्तए-श्युबींग Bb पाठभेदः॥
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