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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लधु-मजूषा
उन (आठ प्रकार के स्फोटों) में वाक्य-स्फोट ही प्रमुख है। क्योंकि लोक में वही अर्थ का बोधक होता है तथा उससे हो अर्थ का अवसान (अर्थ का निरपेक्ष ज्ञान) भी होता है । जैसा कि न्यायभाष्यकार (वात्स्यायन) ने कहा है"अर्थ की समाप्ति (निराकांक्ष ज्ञान) में (समर्थ) पद-समूह का नाम वाक्य है। इस (न्यायभाष्यकार के कथन) में 'समर्थम्' यह (पद) शेष है।
वाक्यस्फोटो मुख्यः-वाक्य से ही लोक में निराकांक्ष रूप से अथं का ज्ञान होता है-पद से नहीं। इस कारण 'वाक्यस्फोट' को ही वैयाकरण प्रमुख स्फोट मानते हैं । वाक्य से जो अर्थ का बोध होता है वह निराकांक्ष होता है----पदों से उस प्रकार का, निराकांक्ष रूप से, अर्थ का बोध नहीं होता। इस तथ्य का स्पष्टीकरण भर्तृहरि ने, वाक्यपदीय के द्वितीय काण्ड में वाक्य की मीमांसक विद्वानों द्वारा सम्मत परिभाषा को प्रस्तुत करते हुए, निम्न कारिका में किया है :
सकांक्षावयवं भेदे परानाकांक्षशब्दकम् ।
कर्मप्रधानं गुणवद् एकार्थ वाक्यम् उच्यते ॥ २.८ इस कारिका का अभिप्राय यह है कि पदों के रूप में विभाग करने पर जिसके अवयव, अर्थ की दृष्टि से, साकांक्ष रहते हैं, परन्तु अविभक्त रूप में पूरे समुदाय के उपस्थित होने पर जिसमें शब्द किसी अन्य शब्द की अपेक्षा नहीं करते, ऐसा क्रिया-प्रधान, विशेषण पद से युक्त तथा एक प्रयोजन वाला पद-समूह वाक्य कहा जाता है ।
.. प्रस्तुत प्रसङ्ग में 'परानाकाङ्क्ष-शब्दकम्' यह विशेषण विशेष महत्त्व का है । इस तथ्य का उल्लेख पुनः भर्तृहरि ने इसी काण्ड की एक और कारिका में किया है :
तथैवकस्य वाक्यस्य निराकांक्षस्य सर्वतः।
शब्दान्तरः समाख्यानं साकांक्षरनुगम्यते ।। २.६
अर्थात्-वाक्य वस्तुतः एक एवं सर्वथा निराकांक्ष होता है। उस एक एवं किसी भी अन्य शब्द की अपेक्षा न करने वाले वाक्य का, साकांक्ष पदों के रूप में विभाजन कर के उन उन, पदों द्वारा अन्वाख्यान किया जाता है।
यहां तुलना के लिये मीमांसा दर्शन (२.१.४६) का अर्थंक्यान् एकं वाक्य साकांक्षं चेत् विभागे स्यात् यह सूत्र द्रष्टव्य है जिसमें उपस्थापित वाक्य-सम्बन्धी परिभाषा में भी 'वाक्य से निराकांक्ष अर्थ-ज्ञान होता है' यह बात स्वीकार की गयी है।
वस्तुतः वाक्य-रचना में ऐसा पद-समूह अपेक्षित है जिसमें से यदि किसी भी एक पद या किन्हीं अनेक पदों का उच्चारण न किया जाय तो वाक्य के अन्य पद साकांक्ष रहें । पर यदि उस वाक्य का सम्पूर्ण पद-समूह या पूरा वाक्य एक साथ उच्चरित हो जाय तो फिर वह पद-समूह किसी भी अन्य पद की आकांक्षा न रखे। जैसे--- रामो भोजनाय गृहं गच्छति' इस वाक्य के पदों को पृथक् २ कहा जाय तो वे सभी साकांक्ष बने रहेंगे-उन से निराकांक्ष रूप से अर्थ का ज्ञान नहीं होगा । पर पूरे वाक्य को कह
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