________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शक्ति-निरूपण
'सखण्ड-पद-व्यक्ति-स्फोट' तथा 'अखण्ड-पद-व्यक्ति-स्फोट' । जातिपक्ष की दृष्टि से पदजाति-स्फोट की कल्पना की गयी । 'जाति' अखण्ड तथा अविभाज्य होती है इसलिये, खण्ड न माने जाने के कारण, उसमें सखण्ड तथा अखण्ड ये भेद नहीं बन पाते । परन्तु दूसरी ओर, व्यक्तिपक्ष में पदव्यक्ति में सखण्डता तथा अखण्डता की कल्पना की जा सकती है इसलिये, 'सखण्ड-पद-व्यक्ति-स्फोट' तथा 'अखण्ड-पद-व्यक्ति-स्फोट' ये भेद बन जाते हैं।
वाक्यस्फोट -- 'देवदत्तः पुस्तकं पठति' इत्यादि वाक्यों में 'देवदत्तः' आदि भिन्न भिन्न पदों की पृथक् सत्ता न मानकर पूरे वाक्य को वैयाकरण पारमार्थिक रूप में एक मानता है। इस दृष्टि से अखण्ड वाक्य को अखण्ड वाक्यार्थ का बोधक मानते हुए 'वाक्यस्फोट' की कल्पना की गयी। इसे भी तीन प्रकार का माना गया- 'वाक्य-जातिस्फोट', 'सखण्ड-वाक्य-व्यक्ति-स्फोट' तथा 'अखण्ड-वाक्य-व्यक्ति-स्फोट' । यहां भी 'जाति' की अखण्डता के कारण ही उसमें सखण्ड तथा अखण्ड भेद नहीं किये जाते । परन्तु व्यक्तिपक्ष की दृष्टि से वाक्य रूप व्यक्ति में सखण्ड तथा अखण्ड ये भेद हो सकते हैं, इसलिये 'सखण्ड-वाक्य व्यक्ति-स्फोट' तथा 'अखण्ड-वाक्य-व्यक्ति-स्फोट' की कल्पना की गयी। स्फोट के इन आठ भेदों को नीचे चार्ट में स्पष्ट किया गया है ।
स्फोट
वर्णस्फोट
पदस्फोट
वाक्यस्फोट
|
V
VI
VII
VIU
V
VI
तस्फोट
वर्णजातिस्फोट
वर्णव्यक्तिस्फोट
पदजातिस्फोट
सखण्डपदव्यक्ति
अखण्डपदव्यक्तिस्फोट
वाक्यजातिस्फोट
सखण्डवाक्यक्तिस्फोट
अखण्डवाक्यव्यक्तिस्फोट
को
[पाठ प्रकार के स्फोटों में 'वाक्यस्फोट' को प्रमुखता]
तत्र वाक्यस्फोटो मुख्यः, तस्यैव लोकेऽर्थबोधकत्वात् तेनैवार्थसमाप्तेश्चेति । तदाह न्यायभाष्यकार :-पदसमूहो वाक्यम् अर्थ-समाप्तौ (न्यायसूत्र, वात्स्यायनभाष्य, १.५५) इति । अस्य 'समर्थम्' इति शेषः ।
For Private and Personal Use Only