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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा तथा 'चिण' प्रत्ययों) की समीपता में (समान रूप से) 'एकत्व' आदि 'संख्या' अर्थ हैं । इस (बात) को (भटटोजि दीक्षित ने) कहा है__"उन 'फल' तथा 'व्यापार' (रूप धात्वर्थ) में, 'फल' में आश्रय ('कर्म') के अन्वय का द्योतन 'तङ्', 'यक्' तथा 'चिण' आदि प्रत्यय करते हैं । 'शप्' ‘श्नम्' आदि (प्रत्यय) तो 'व्यापार' में आश्रय ('कर्ता') के अन्वय का द्योतन करते हैं"। ___'फल' तथा 'व्यापार' धातु के अर्थ हैं यह कहा ही गया है । उनमें 'तिङ की समीपता में उस ('तिङ) का अर्थ 'सङख्या', उस ('तिङ्') के (ही) अर्थ, 'कारक' में विशेषण है । इस (बात) को (दीक्षित ने) कहा है
___ "धातु' को 'फल' एवं 'व्यापार' का वाचक माना गया है तथा 'तिङ' को (इन दोनों के) आश्रय ('कर्ता' या 'कर्म') का । 'फल' के प्रति 'व्यापार' प्रधान होता है और तिङ के अर्थ ('कर्ता', 'कर्म', 'संख्या', 'काल' और 'भाव') तो विशेषण होते हैं"।
"पाख्यात (के अर्थ) में 'क्रिया' की प्रधानता होती है" यास्क के इस कथन में 'क्रिया' शब्द 'करण'-व्युत्पत्ति ('क्रियते अनया इति क्रिया') के द्वारा 'व्यापार' अर्थ का बोधक है तथा 'कर्म'-व्युत्पत्ति ('क्रियते यत् सा क्रिया') के द्वारा 'फल' अर्थ का (बोधक है)- यह जानना चाहिये। इस तरह (कर्तृवाच्य में) 'ग्रामं गच्छति चैत्रः (चैत्र गांव जाता है) इस (वाक्य) में “एकत्व' (संख्या) से युक्त' चैत्र है 'कर्ता' जिसमें ऐसा, 'वर्तमान काल' में होने वाला, तथा ग्राम रूप 'कर्म' में स्थित जो 'संयोग' उसके अनुकूल होने वाला 'व्यापार' (यह बोध होता है) तथा 'ग्रामो गम्यते मैत्रेण' (मैत्र के द्वारा गांव जाया जाता है) इस (कर्मवाच्य के प्रयोग) में "मैत्र है 'कर्ता' जिसमें ऐसे, 'वर्तमानकाल' में होने वाले, 'व्यापार' से उत्पन्न, 'ग्राम' रूप 'कर्म' में स्थित, 'संयोग' (रूप 'फल') यह ज्ञान होता है।
तत्र संख्याविशेष' 'संख्या चार्थः-सभी लादेश सामान्यतया 'संख्या-विशेष, 'काल'-विशेष और 'कर्ता' तथा 'कर्म' में से किसी न किसी एक 'कारक' अथवा कहीं कह केवल भाव, अर्थात् शुद्ध 'धात्वर्थ', को कहते हैं । 'शप्', 'श्नम्' आदि प्रत्ययों की समीपता में 'लादेश' का अर्थ 'कर्ता' कारक होता है तथा 'यक्' के साथ आये हुए 'तङ्' आदि की सन्निधि में 'लादेश' का अर्थ 'कर्म' अथवा 'भाव' होता है। अपने इस प्रतिपादन के पोषण के लिये ऊपर नागेश ने दीक्षित की कारिका को उद्धत किया।
फलव्यापारयोस्तत्र प्राश्रयान्वयम् :-दीक्षित की इस कारिका की सरल व्याख्या यह है कि 'परस्मैपदी' धातुओं से विहित 'तिङ' प्रत्यय, "सार्वधातुके यक्” (पा० ३.१.६७) से विहित 'यक्' प्रत्यय तथा "चिण भावकमणोः" (पा० ३.१.६६) से विहित 'चिण' प्रत्यय की उपस्थित में 'लादेश' का अन्वय 'फल' के प्राश्रय ('कम') में होता
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